Thetarget365
ख़बर तड़का
नेताजी की पीड़ा …इस बार तो एक बकरा भी खत्म नहीं हुआ..।
नेताजी सत्ता में हैं तो समर्थकों की फौज भी साथ रहती है। सत्ता में नहीं रहे तो पूछ परख करने भी नहीं आते। सरगुजा संसदीय सीट के एक नेताजी इन दिनों बेहद परेशान है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद मुश्किलें बढ़ती जा रही है। समर्थक भी साथ नहीं दे रहे हैं। रायपुर, दिल्ली की दौड़ के बाद नेताजी शहर आए। शाम को सुरक्षा गार्ड के साथ बैठे थे। कोई नहीं था। नजदीकी शुभचिंतक पहुंच गया। नेताजी जब सत्ता में थे तो शुभचिंतक को कुर्सी भी नसीब नहीं होती थी। नेताजी को देख कर बोल पड़े – अरे भैया अकेले बैठे हैं। नेताजी की पीड़ा सामने आ गई। दुखी मन से बोले – पिछली बार तक तीन बकरा भी कम पड़ जाता था। इस बार एक बकरा भी खत्म नहीं हुआ। चलिए समय-समय की बात है। मुश्किल में ही अपने लोगों की पहचान होती है। मुझे फिर मौका मिलेगा। अगली बार ऐसे लोगों के लिए मेरे घर के भी दरवाजे बंद रहेंगे।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
यही तो राजनीति है
40 डिग्री सेल्सियस पर चुनावी माहौल भी गरम है। नेता और राजनीतिक दल एक- दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। सरगुजा संसदीय सीट के लिए नामांकन प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। प्रत्याशी चुनावी मैदान में कूद चुके हैं। सरगुजा संसदीय सीट की एक महिला प्रत्याशी की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए जमीन का अवरोध खड़ा कर दिया गया है। जमीन कब्जे के आरोप के नए दांव को पटखनी देने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। जमीन का यह मामला अचानक सामने आते ही आरोप- प्रत्यारोप भी शुरू हो गया है चुनावी फायदे के लिए आरोप लगाने की बात कही जा रही है लेकिन विरोधी कहां शांत बैठने वाले हैं। यही तो राजनीति है।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सरकार किसी की भी हो अफसर तो अफसर हैं..
सरकार किसी की भी हो अफसर तो अफसर होते हैं। अफसर बखूबी जानते हैं सत्ताधारी दल के जिम्मेदार पदाधिकारियों की क्या औकात होती है.! इन पदाधिकारी को कितना तवज्जो देना है। अफसर जानते हैं इन नेताओं की क्या बिसात है, इसलिए पहले की तरह अफसर इनसे न कोई सलाह लेते हैं न उनकी बात मानते हैं। अफसरों के इस मिजाज को देख सत्ताधारी दल के पदाधिकारी भी अफसरों की “हां” में “हां” मिलाना ही बेहतर समझते हैं। उनके लिए यही सही भी है कि वे “हां” में “हां” मिलाएं। इसके अलावा बेचारे कुछ कर भी नहीं सकते क्योंकि अफसर तो अफसर हैं वे बखूबी जानते हैं पदाधिकारियों की औकात…!
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
बहुत अच्छे हैं साहब
सरगुजा का प्रशासनिक तंत्र इन दिनों गदगद है। साहब की अच्छाई के राग अलाप रहे हैं।कारण भी हैं.. पुराने साहब कड़क मिजाज थे। अच्छे काम में भी कब खोट निकाल खरी-खोटी सुना दें इसका अंदाजा नहीं लग पाता था। साहब के भय से अच्छी सोच भी खुलकर सामने नहीं आ पाती थी लेकिन अभी हौसला बढ़ गया है। पहले के साहब से डरे रहने वाले मातहत अब इतना निश्चिंत हो चुके हैं कि चाय की पेशकश भी कर रहे हैं। साहब सुबह-सुबह एक स्कूल में पहुंच गए। उनकी अच्छाई और नहीं डांटने के गुण से प्रभावित प्राचार्य ने अपने कक्ष में आमंत्रित किया। साहब बोले – नहीं चेंबर में नहीं स्टाफ रूम में बैठूंगा। शिक्षकों के बैठने वाली एक साधारण कुर्सी खींची और बैठ गए। उनके जाने के बाद यह प्रचारित होने लगा कि इतने सहज, सरल साहब रहेंगे तो जिले का कामकाज भी तो अच्छा ही होगा न ..
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
जरा संभलकर कप्तान साहब
सरगुजा के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अब पुलिस नज़र आने लगी हैं। कप्तान साहब की सख्ती ने पुलिसिंग को मजबूत कर दिया है। चैन की नींद सोने वाले अफसर भी परेशान हैं क्योंकि उन्हें भी रात में घर छोडकर गस्त करनी पड़ रही है। जनता खुश है लेकिन मातहत अफसरों के चेहरों पर हमेशा तनाव झलकता है। कप्तान साहब चार बोलते हैं तो ये 40 के हिसाब से सख्ती बरतने लगते हैं। इन्हें लगता है कि जनता परेशान होगी तो शिकायत होगी। शिकवा-शिकायतों में पूछ परख शुरू हुई तो मनोबल गिरेगा और हम भी घरों में चैन से सो सकेंगे। साख पर धब्बा लगे तो लगे, हमें इससे क्या..। इसलिए, कप्तान साहब जरा संभलकर..
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
वोट देने आ जाओ, काम फिर पकड़ लेना
तमाम दावों के बीच एक बार फिर शासन-प्रशासन की पोल खुल गई। संभाग में काम की संभावनाओं की तलाश में हार चुके पलायन हुए श्रमिकों से कलेक्टर ने वोट अपील की है। लेकिन ये वोट ही तो है जो उनकी न तो तकदीर बदल रहा और न ही तस्वीर। परिवार का पेट पालने की मजबूरी न होती तो ये भी बाकियों की तरह लोकतंत्र के महापर्व में अपनी पूर्णाहुति दे रहे होते। लेकिन अब साहब को कौन बताए कि इस चुनाव में वोट डालने यदि गोवा, दिल्ली और अन्य दूर के राज्यों से वे अपने गांव अपने देश आएंगे तो खर्च भी तो होगा। एक-एक पैसा बचाकर अपनी गृहस्थी अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने वाले श्रमिक, नेताओं को भी वोट देकर उनकी जरूरतों को पूरा करेंगे। नेताओं के भाषणों की भजनों की ध्वनि यहां लोग तो सुन ही रहे हैं। अच्छा होता नेता भी सबका दर्द समझने की कूबत रखते। ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
मोदी की सभा से पहले विधानसभा कमांडर आए निशाने पर
प्रधानमंत्री 171 दिनों के बाद फिर से सरगुजा संभाग के प्रवास पर 24 अप्रैल को आ रहे हैं। उनका इस बार का कार्यक्रम सूरजपुर जिले के बजाय संभाग के मुख्यालय अंबिकापुर में है। मुख्यमंत्री की उपस्थिति में हुए नामांकन रैली की समीक्षा बाद पार्टी के अंदर खाने हलचल बढ़ गई है। ऊपर से मिले निर्देशों के बाद कई दिग्गजों के कसबल ढीले पड़े हैं और तेवर में नरमी देखी जा रही है। संभाग के एक प्रभावशाली सत्ताधीश और उनके बुलावे पर तत्काल वहां पहुंचे उम्मीदवार की शहर से बाहर के एक होटल में हुई मुलाक़ात बदलते समीकरण के कारण खासी चर्चा में है। प्रधानमंत्री का अंबिकापुर प्रवास भाजपा के लिए संजीवनी बूटी से कम नहीं है। ऐसे में सुबह -सुबह आयोजित होने वाली रैली मैं भीड़ का इंतजाम अहम प्राथमिकता है। नामांकन कार्यक्रम से चेतने के बाद, केवल रैली की भीड़ से विधायकों का मूल्यांकन करने के बजाय पार्टी, मतदान प्रतिशत और पिछले लोकसभा चुनाव में विधानसभा वार अंतर को भी पैमाना बनाने जा रही है। नामांकन रैली की सूचना प्रसारित करने में बरती गई कोताही से व्यवस्था में बड़ी जिम्मेदारी निभाने वाले एक विधानसभा कमांडर भी निशाने पर आ गए हैं। कुल मिलाकर क्राइसिस मैनेजमेंट में लगी टीम का फीडबैक पार्टी के लिए खासा महत्वपूर्ण हो चला है।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
बड़ी मुश्किल है भाई
क़ल तक नेताजी विरोधी थे। आज साथ में है। पार्टी ने टिकट भी दे दी है तब जीत दिलाने की बड़ी जबाबदारी भी आ गई है लेकिन जमीनी सच्चाई एकदम उलट है। गारंटी और नाम के भरोसे जनता के बीच पहुंच रहे हैं तो खरी-खरी भी सुनने को मिल रही है। लोग पूछ रहे हैं- न भैया वोला काहे टिकट दिलवा देहा..। दूसर कोई ला देना रहिस.. जनता का सवाल भी चुभने वाला है। चुनाव है इसलिए जिताने की जिम्मेदारी लेने वालों को सब सुनना पड़ रहा है। अपनों के बीच दुख भी बयां कर रहे हैं बड़ी मुश्किल है भाई..। पद पर बने रहना है तो इन्हें भी जीताना ही पड़ेगा।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
यहां भी नजर आएंगे बजरंगबली
जाते-जाते आपको बताते चलें कि कलेक्टोरेट में भी बजरंगबली नजर आएंगे। यहां भी संकटमोचक हनुमान का मंदिर बनेगा। थानों में मंदिरों का निर्माण तो देखा है लेकिन कलेक्टोरेट में भी बजरंगबली के दर्शन कर अधिकारी-कर्मचारी शासकीय कामकाज की शुरुआत करेंगे। सभी के सहयोग से मंदिर बनेगा। दर्शन पूजन से सभी उर्जित होंगे यह ऊर्जा सही दिशा में लगे तो अच्छा है अन्यथा बंसू की बांसुरी बजी तो सब गड़बड़ ही गड़बड़ है।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
अंत में एक बात
सरगुजा के कथित कांग्रेसी सत्ता बदलते ही राजधानी जाकर भाजपा में शामिल हो गए। ये नेता किस लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार कर रहे हैं..? ऐसे स्टार प्रचारक की सरगुजा में आवश्यकता है। क्योंकि ये भाजपा प्रत्याशी के पूर्व सहयोगी भी रह चुके हैं, इसलिए भी इनकी आवश्यकता महसूस हो रही है।