अंबिकापुर। अपर सत्र न्यायाधीश फ़ास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो एक्ट) पूजा जायसवाल की न्यायालय ने कहा है कि दंड का प्रश्न अत्यंत ही कठिन होता है। लेकिन दंड अधिरोपित करते समय केवल अभियुक्त की उम्र या उसके पारिवारिक पृष्ठभूमि के अवलंबन होने तक ही विचार योग्य नहीं होता है, बल्कि अपराध की प्रकृति एवं अपराध के परिणामस्वरूप आहत को आई मानसिक पीड़ा भी विचार योग्य होता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी बालिका के साथ छेड़छाड़ के एक मामले की सुनवाई के दौरान की है। सरगुजा जिले की बालिका के साथ बदनीयती से छेड़छाड़ के आरोपी रामभजन राम बरगाह को अपर सत्र न्यायाधीश फ़ास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो एक्ट) पूजा जायसवाल की न्यायालय ने तीन वर्ष कारावास और 500 रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। अर्थदंड की राशि अदा नहीं करने पर आरोपित को एक माह अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि अपराध की गंभीरता एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को एवं अभियुक्त की समस्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुये विचारोपरान्त अभियुक्त को छेड़छाड़ व लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के तहत दोषी करार दिया गया है। पीड़िता को दो लाख रुपये प्रतिकर की राशि दिए जाने की अनुशंसा न्यायालय ने की है। अतिरिक्त लोक अभियोजक राकेश सिन्हा ने बताया कि घटना दिवस 29 जनवरी 2021 को पीड़िता के साथ आरोपित ने बदनीयती से छेड़छाड़ की थी। पीड़िता रोते हुए घर पहुंची थी। स्वजन द्वारा पूछताछ करने पर उसने आरोपी की पहचान कराई थी। इसी आधार पर पुलिस ने प्रकरण पंजीकृत कर आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय के आदेश पर जेल भेज दिया था। प्रकरण के सारे तथ्यों की सुनवाई और पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर अपर सत्र न्यायाधीश फ़ास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो एक्ट) पूजा जायसवाल के न्यायालय ने आइपीसी की धारा 354 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम का दोषी पाया। दोनों धारा में तीन-तीन वर्ष कारावास व 500-500 रुपये अर्थदंड अधिरोपित किया गया है। अर्थदंड की राशि नहीं देने पर एक -एक माह अतिरिक्त कारावास का प्रविधान है। दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी।