अंबिकापुर। मां की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि रविवार से शुरू हो रहा है। मंदिरों व माता के दरबार को सजाने का कार्य अपने अंतिम चरण पर है। शहर की आराध्य देवी आदिशक्ति मां महामाया मंदिर सहित गांधी चौक स्थित दुर्गा मंदिर शक्ति पीठ, पुलिस लाइन स्थित गौरी मंदिर, काली माता मंदिर सहित विभिन्न देवी मंदिरों में ज्योति कलश स्थापना की तैयारियां भी पूरी कर ली गई है। नगर में कई जगह भव्य दुर्गा पंडाल भी अब अंतिम रूप ले रहे हैं।
शहर में आज नवरात्रि की तैयारियों को लेकर बाजार में भी बहुत चहल-पहल थी। घरों में भी पूजा-पाठ को लेकर सभी पूजन सामग्री खरीदारी कर रहे थे। भक्त अपने घरों में भी विधिविधान से कलश स्थापित करेंगे। शारदीय नवरात्रि का नौ दिवसीय पवित्र पर्व रविवार को घटस्थापना के साथ ही शुरू हो जाएगा। माता के भक्त नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विशेष पूजा-अर्चना करेंगे। इस दिन माता की चौकी, अखंड ज्योति व देवी प्रतिमा भी स्थापित किया जाएगा। शक्ति आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र पर देवी दुर्गा की पूजा और साधना की जाती है। इसके अलावा देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। हिंदू धर्म में देवी दुर्गा जो माता पार्वती का ही स्वरूप हैं, उन्हें महाशक्ति के रूप में पूजा जाता है। नवरात्र में घट स्थापना का विशेष महत्व होता है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार से हो रही है। ऐसे में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 21 मिनट से सुबह 10 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। वहीं, घट स्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से 12.30 मिनट तक रहेगा।
“महामाया दर्शन”
माँ महामाया, सरगुजा और सरगुजा के पुरे विश्व में फैले प्रवासियों की अटूट आस्था की शक्तिपीठ केन्द्र, आदिशक्ति, महाशक्ति, प्रचण्ड चंडी, छिन्नमस्तक, उदार, ममतामयी वन देवी महामाया के साथ आदिकाल से एक साथ दो देवी प्रतिमा विराजमान थीं। जिन्हें “बड़ी समलाईं” और “छोटी समलाई” कहा जाता था। जनश्रुति अनुसार महाराजा को स्वप्न में महसूस हुआ की दोनों देवियों में एक साथ न रह सकने के स्तर तक झगड़ा या विवाद हो गया या महाराजा द्वारा आस्था स्थल की संख्या बढ़ाने या आक्रांताओं की मूर्ति चोरी प्रयास से बचाव के उद्देश्य से दोनों देवियों को अलग-अलग स्थापित किया गया। जब बड़ी, छोटी दोनों समलाई माँ एक ही स्थान पर थीं तब इनकी चमत्कारिक शक्तियों और तेज से अचंभित मराठे बार-बार पूरी मूर्तियां ढो कर अपहृत करने में असमर्थ होने पर सिर काट कर ले गए। इसलिए प्रतिवर्ष शारदेय नवरात्र आरम्भ संधि रात्रि में एक कुम्हार परिवार द्वारा रात्रि में पीढ़ी दर पीढ़ी महामाया समलाया का नया सिर बनाया जाता है।
दुर्लभ देववृक्ष “अक्षयवट” की शीतल छाँव से आच्छादित बड़ी समलाया जिन्हें अब “महामाया” कहा जाता है, उनकी संगत के लिए बायीं ऒर मिर्जापुर से विन्ध्वासिनी देवी की काली रंग की प्रतिमा लाकर स्थापित की गई। वही छोटी समलाया को मूल जगह से करीब पौन किलोमीटर शहर की ओर पास में स्थापित किया गया। इसलिए मान्यता है कि दोनों देवी बहनों की एक साथ दर्शन किये बिना “महामाया दर्शन” बिल्कुल अपूर्ण या कम प्रभावी होता है। पहले दीदी “बड़ी समलाया” यानी “महामाया” फिर वापसी में बहन “छोटी समलाया” यानी “समलाया” का दर्शन किया जाना चाहिए।
महामाया द्वारा प्रसन्न हो दिया आशीर्वाद या मन्नत पर समलाया में मत्था टेकने के बाद मुहर लगने पर प्रभावी या फलीभूत होती है। सरगुजा शक्ति का केंद्र रही है। रतनपुर, सम्बलपुर और डोंगरगढ़, झारसुगड़ा सहित कई जगहों पर सरगुजा की मूर्तियां या उनके अंगों के अंश ले जाने की जनश्रुति है।
गोविन्द शर्मा के फेसबुक वॉल से