छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आते ही अडानी इन्टरप्राइजेस की राह साफ करते हुए हसदेव अरण्य में कटाई के काम को अंजाम देना शुरु कर दिया है। इस बार डबल इंजन की सरकार है, स्पष्ट है कि भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है। विपक्षी कांग्रेस अभी हार के सदमे से और आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप में समय बिताना और अपनी दीनहीन स्थिति की आड़ में इस बड़े मसले पर मुँह छिपाना जैसी ही कोई कोई रणनीति अख्तियार करेगी।
इन सबके बीच बुरी तरह से ठगी गई क्षेत्र की जनता के सामने उसका हसदेव अरण्य मिटता जा रहा है। जो राजनीतिक कार्यकर्ता कल तक क्षेत्र की आदिवासी जनता के साथ एकजुट हो कर संघर्ष करने की बात करते थे वही अब सरकार और अडानी की तरफ हो जाएँगे। बदले हुए परिदृश्य में राजनीतिक दलों और उनके कारकूनों का मूल चरित्र सामने तो आएगा। पर इससे होगा भी क्या..? हसदेव अरण्य की बर्बादी देखना ही क्षेत्र की जनता की नियति है।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन होते ही भाजपा ने अपने प्रमुख एजेंडे पर काम शुरू कर दिया है। इस चरण में हसदेव अरण्य क्षेत्र के लगभग सौ हेक्टेयर भूमि के वनों को काटने के लिए अदानी इंटरप्राइजेस का रास्ता साफ होते ही हज़ारों पेड़ों की बलि देने का काम शुरू हो चुका है।
मज़ेदार है कि सूबे के नए मुखिया ने अपने मंत्रिमण्डल का गठन भी नहीं किया है और केन्द्र की इस मंशा को अमली जामा पहनाने वन अमल के साथ भारी फोर्स और अधिकारियों का दल जंगल की कटाई में लगा दिया है। क्षेत्र के ग्रामीणों के अलावा किसी अन्य बाहरी व्यक्ति के वहाँ जाने पर रोक लगा दी गई है और विरोध में उठने वाली हर आवाज को कड़ाई से दबाने के लिए पुलिस-प्रशासन की सख्ती और गिरफ्तारियों का सहारा लिया जा रहा है।
गौरतलब है कि इस हसदेव अरण्य क्षेत्र के जंगलों की कटाई का एक चक्र भूपेश सरकार के दौरान भी चलाया गया था और फोर्स लगाकर हज़ारों पेड़ काट डाले गये थे। जिसका भारी विरोध हुआ था। सरगुजा संभाग के तमाम छोटे-बड़े भाजपा नेता जंगल की रक्षा में आंदोलित ग्रामीणों के साथ खड़े हुए और एकजुटता दिखाई थी, वहीं दूसरी तरफ पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने भी क्षेत्र के ग्रामीणों के पक्ष में हुंकार भरी थी और ऐलान किया था कि अगर जोर-जबरदस्ती की गई तो लोगों की तरफ से पहली गोली में खाऊंगा लेकिन जंगलों की रक्षा की जाएगी।
संतुलन साधने की राजनीतिक बाजीगरी का खेल खेलते हुए भूपेश बघेल ने उस समय अदानी की कम्पनी को बड़ा सहयोग करते हुए लगभूग 45 हेक्टेयर भूमि से दस हज़ार से ज़्यादा पेड़ भी कटवा डाले। यह घटना लगभग एक वर्ष पहले की ही है। तब भाजपा के लोग धरना स्थल पर जा कर ग्रामीणों के साथ बैठे थे और भारी फोर्स के बीच भी जंगलों की कटाई का जमकर विरोध किया था। भूपेश बघेल ने हसदेव अरण्य में जंगल की कटाई का एक चरण किसी तरह पूरा कर वहाँ माइनिंग की अनुमति पर रोक लगा दी, जाहिर है यह चुनाव के नजरिये से ही थी, क्योंकि डेढ महीने बाद ही चुनाव होने थे और वह इसे मुद्दा नहीं बनने देना चाहते थे। बदले हुए परिदृश्य में हसदेव अरण्य की रक्षा के लिए आगे आने का मतलब सीधे केन्द्र की मंशा से टकराना है जिसमें अडानी की महत्वाकांक्षा सर्वोपरि है। देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस यहाँ कोई प्रभावी उपस्थिति दिखा पाती है या वह भी आत्मसमर्पण की स्थिति में है।