अंबिकापुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत जैविक कीट नियंत्रण आज की आवश्यकता, विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आदिवासी वित पोषित योजना अंतर्गत, राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय के सभागार में आयोजित किया गया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में ग्राम कछार एवं छैरमुंडा के 96 आदिवासी कृषक उपस्थित हुए। पैदावार अधिक से अधिक कैसे करें, उन्नतशील जाति का उपयोग करें एवं पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालने वाले कारकों पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डॉ. योगेश मेश्राम मुख्य अन्वेषक ने समस्त प्रकार की फसलों में कीट नियंत्रण हेतु, मित्रजीव, परजीवी को किस प्रकार एकत्रित एवं पाल कर कैसे खेतों में पहुंचाकर उनका परिणाम प्राप्त करें पर विस्तृत जानकारी दी l डॉ. बीपी कतलम विशिष्ट अतिथि ने कहा कि कीटनाशी हेतु जहर की कम से कम मात्रा खेतों में पहुंचाया जाऐ जिससे लाभदायक कीट संरक्षित हो सके एवं वातावरण प्रभावित न हो। अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. आदिकांत प्रधान ने समन्वित फसल प्रणाली पर जोर देते हुए कहा कि फसलों को हेर फेर कर बुवाई करें ताकि एक ही प्रकार के कीट की संख्या में वृद्धि न हो। डॉ. वीके सिंह, प्राध्यापक, पूर्व अधिष्ठाता ने बताया दलहनी फसलों की पैदावार कैसे अधिक लें, किस प्रकार की मृदा उपयुक्त होती है। डॉ. पीके भगत प्रभारी जैविक कीट नियंत्रण द्वारा वर्तमान में गाजर घास एक विकराल रूप ले रहा है, इस घास को नष्ट करने के लिए जैविक कीट जाईगोग्रामा बाईकोलोराटा कीट की निर्धारित मात्रा छोड़ने पर गाजर घास की संख्या में निरंतर कमी देखी गई एवं भंडारित अनाज रखरखाव हेतु पौध जनित पत्तियों की उपयोग करें ताकि अनाज सुरक्षित रहे। कार्यक्रम में कृषकों द्वारा प्रश्नोत्तरी किया गया। डॉ. सचिन कुमार जायसवाल द्वारा उपस्थित कृषकों को प्रक्षेत्र का भ्रमण, प्रदर्शन एवं जैविक कीटों की पहचान कराया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित लाभान्वित कृषकों को परियोजना मद से प्लास्टिक ड्रम सेट, नैपसेक स्प्रेयर, प्लास्टिक टब, त्रिपाल, गार्डन पाइप एवं आम की उन्नत किस्म जैसे मल्लिका, आम्रपाली, दशहरी का वितरण किया गया। साथ ही प्रण लेते हुए जैविक कीट नियंत्रण आज की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम का समापन किया गया।