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ख़बर तड़का :
अब कहां गायब हो गए नेताजी लोग
पांच साल कांग्रेस की सरकार थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री के चहेते बने सरगुजा क्षेत्र के नेता सरकार बदलते ही अचानक गायब हो गए। मूल खूंटे को हिलाने का प्रयास किया और हिला भी दिया, पर खुद भी हिल गए। इन्हें खुद के हिलने का अंदेशा सपने में भी नहीं था। खुद का खूंटा भी उखड़ गया। नेताजी के साथ कई छुटभैये नेता भी पैदा हो गए थे। ये सब भी गायब हो गए। कुछ तो भाजपा की पूंछ पकड़ निकल लिए। अब समय है, ऐसे नेताओं को पहचानने कि जो किसी के संकट में साथ नहीं देते। ऐसे लोग एक दिन खुद संकट में आते हैं। अभी तो जनता ने क्षेत्र से विदा किया है, कुछ दिन में जिले से गायब होना पड़ेगा, इसलिए जब समय अच्छा हो अपने आजू-बाजू सबको साथ लेकर चलो, सबकी पूछ परख करो, वरना खुद का खूंटा उखड़ जाएगा तो कहीं के नहीं रहोगे।
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सरगुजा का सरकारी चिकन पहुंच रहा दुर्ग
कुछ लोगों को वेज से ज्यादा नॉनवेज खाना पसंद होता है। जिले में फिर से रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े एक अधिकारी के नॉनवेज प्रेम से मातहत हलकान हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद संविदा पर काम कर रहे कलेक्ट्रेट के एक वरिष्ठ अधिकारी अपने अधिकांश दौरे में तीन चार स्थान चिन्हित कर इसकी उपलब्धता का फरमान जारी कर देते हैं। उनके अनुसार नॉनवेज में चिकन किफायती स्वादिष्ट और महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होता है। बढ़ती गर्मी में इसका ज्यादा सेवन स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक ना हो इसे ध्यान में रखकर उन्होंने एक बढ़िया युक्ति भी निकाल ली है। प्रायोजकों की मेहनत पर पानी न फिरे इसके लिए कभी समय की कमी, कभी दौरे की व्यस्तता बता कर पूरे तैयार माल को टिफिन में ले जाना विभाग में बकायदा चर्चित है। अब तो पैक माल बस से दुर्ग तक मुसलसल जाने की भी ख़बर आम हो रही है।
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यहां लड़ाई कौन सच्चा कांग्रेसी..!
सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में हर बार चुनाव में कई मुद्दे सामने आते हैं पर इस बार का मुद्दा ही अनोखा है। मुद्दा यह है कि हम दोनों कांग्रेसी हैं…! कौन सच्चा कांग्रेसी है लोग बताएंगे..! यह इसलिए क्योंकि भाजपा ने जिसे प्रत्याशी बनाया है वह चार माह पूर्व कांग्रेस के विधायक थे। यही नहीं 10 साल कांग्रेस के विधायक रहे, ऐसे में भाजपा का प्रत्याशी बन चुनाव मैदान में उतरे ये प्रत्याशी को कांग्रेस के प्रत्याशी ने कांग्रेसी बता दिया है..! अब हर जगह कह रही हैं, मैं भी कांग्रेसी हूं और भाजपा के प्रत्याशी भी कांग्रेसी हैं..! देखना है, कौन सच्चे कांग्रेसी को चुनता है।
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कौन देगा गवाही हमारे हक में
हम जितने सच्चे हैं उतने ही तनहा भी
लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति बनाने प्रदेश के चुनाव प्रभारी संभाग मुख्यालय पहुंचे।संगठन, प्रचार अभियान, प्रबंधन पर दिशा निर्देश देने के बाद उन्होंने नए नवेले विधायकों को सबको साथ लेकर चलने की सलाह दी। अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि कुछ लोगों से घिरे रहने वाले जनप्रतिनिधि के लिए उनके निकटस्त ही चुनाव आते-आते तक अक्सर बोझ बन जाते हैं फिर दूसरे कार्यकर्ताओं की याद आएगी, इसलिए अभी से सबको साथ लेकर चलने की आदत डालें। मुनासिब मौका पाकर सामने बैठे संगठन के एक सूबेदार ने कहा- विधायक आपकी बात मानेंगे तब ना ? प्रति प्रश्न में दबी पीड़ा और मर्म को समझकर प्रदेश प्रभारी ने कहा नहीं मानेंगे तो भुगतेंगे, पर कोशिश तो सबको साथ लेकर चलने की करनी होगी। प्रदेश प्रभारी के ताकीद ने नवोदित विधायकों की कार्यशैली से खुद को हासिए में महसूस करने वाले कार्यकर्ताओं को भी उम्मीद से भर दिया है।
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नमो-नमो का जाप पार लगाएगा चिंता की वैतरणी ?
आगामी लोकसभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, चुनावी परिदृश्य के नए समीकरण नजर आने लगे हैं। चुनावी तस्वीर के बदलते रंगों से यह साफ होता जा रहा है कि यह मुकाबला उतना आसान नहीं है जितना शुरुआत में समझा जा रहा था। बीते विधानसभा चुनाव में बुरी शिकस्त के बाद कांग्रेस का बिखराव बढ़ना स्वाभाविक मालूम होता था। आरोप-प्रत्यारोप के दौर और आपसी खींचातानी के और भी नज़ारे दिखते थे, खोने के लिए कुछ भी न होने का भाव कांग्रेस को और भी जर्जर और दीन-हीन बनता चला जाता लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखता। दिलचस्प है कि होता कुछ और ही दिख रहा है, जिस यक़ीन और उत्साह के साथ भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने चिंतामणि को टिकट दी थी वह फीकी पड़ती दिख रही है। चिंतामणि का उनके अपने क्षेत्र में विरोध, उनकी करतूतों का खुलता पुलिंदा और उनकी वास्तविक छवि का उजागर होना भाजपा के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। कुछ माह पहले ही दल बदल कर भाजपा में आए चिंतामणि को भाजपा के ही प्रभावशाली लोग हज़म नहीं कर पा रहे हैं। अंदरखाने बढ़ी चिंता को दूर करने संगठन के कारकून अनुशासन का डंडा दिखाने सरगुजा आ कर लौट जा रहे हैं। लेकिन कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है सिवाय इसके कि संगठन के नेता, कैडर और स्वयं चिंतामणि का ज्यादा समय अपने ही क्षेत्र में लोगों को मैनेज करने में खर्च हो रहा है और वह पूरे लोकसभा क्षेत्र यानी कि आठ विधानसभा में समय नहीं दे पा रहे हैं। कुल मिला कर नमो नमो का जाप अर्थात मोदी का नाम ही एक मात्र नैया है जो उन्हें यह चुनावी वैतरणी पार करा सकती है।
ऐसा नहीं है कि इस चुनाव में कांग्रेस की राह आसान है, लेकिन यह सच है कि एक शिक्षित युवा महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारकर कांग्रेस आलाकमान ने मुकाबला रोचक तो बना ही दिया है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के साथ अपेक्षाकृत संसाधनों का अभाव है, सत्ता की मलाई चाट चुके तमाम मंत्री-विधायक जिन्हें अब तक एकजुट होकर कमर कस लेनी थी वह घर बैठकर हार का जख्म ही सहला रहे हैं। इन सब के बीच एक बात जरूर शशि सिंह और उनकी पार्टी को आश्वस्त करती नजर आती है कि कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव पूरी ताकत के साथ शशि सिंह के पक्ष में अपना योगदान कर रहे हैं। ऐसे में सरगुजा का जातीय समीकरण चल गया और गोंड़ जनजाति के लगभग 7 लाख वोटों में से एक बड़ा जुटान ध्रुवीकृत हो गया तो कोई संदेह नहीं की शशि सिंह बाज़ी अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाएंगी। आने वाले दिनों में स्थिति में कई बदलाव संभावित है लेकिन मौजूदा सूरतेहाल दोनों प्रत्याशियों के लिए अलग-अलग कारणों से जद्दोजहद बढ़ाए हुए है, कहना ना होगा कि यह चुनाव भाजपा ने जितना आसान समझा था, है नहीं। कांग्रेस में भी वह अंडर करंट अब तक नहीं बन पा रहा है, जो अब तक तरंगित हो जाना था।
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पैसा पहुंचा क्या..?
सत्ताधारी दल भाजपा के केंद्रीय संगठन ने सरगुजा लोकसभा क्षेत्र के चुनाव के लिए बड़ी राशि उपलब्ध कराई है। इस राशि को चुनाव प्रचार में खर्च तो करना ही है, सभी बूथों तक राशि पहुंचाने की जिम्मेदारी भी है। बूथ लेवल की इस राशि को कोई हड़प न जाए इस पर केंद्रीय टीम निगरानी भी रख रही है। सुनने में तो ये भी आ रहा है कि सीधे बूथ अध्यक्ष को फोन कर पूछा भी जा रहा है, पैसा पहुंचा क्या…? ऐसे में बूथ के हिस्से का पैसा कोई खा जाए, हड़प जाए संभव नहीं..!
केंद्रीय नेतृत्व के इस निगरानी से बूथ का पैसा खाने की सोच रखने वाले सकते में हैं।