अंबिकापुर @thetarget365 सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड अंतर्गत हसदेव क्षेत्र में परसा ईस्ट केते एवं बासेन (PEKB) कोल खदान के लिये वनों की कटाई एक बार फिर से शुरू हो गई है। क्षेत्र के ग्रामीण इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।
शनिवार को अंबिकापुर सर्किट हाउस में उदयपुर के घाटबर्रा एवं अन्य क्षेत्रों से पहुंचे ग्रामीणों ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह को एक आवेदन सौंप कर कार्रवाई की मांग की है जिसमें विगत दिनों आयोजित ग्राम सभा की तारिख का जिक्र करते हुए बताया है बिना अनुमति के एसडीएम जबरन आकर बैठ गये और कार्यवाही रजिस्टर में केवल ग्राम सभा अध्यक्ष एवं सरपंच का हस्ताक्षर करा कर ले गये ।आज तक ग्रामसभा की रजिस्टर गांव को नहीं मिली है। आगे उस रजिस्टर में एसडीएम ने क्या लिखा और किसे दिया किसी को जानकारी नहीं।
देखें वीडियो 👇
वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों ने अनुसूचित जनजाति आयोग के पास विगत वर्षों में हुए फर्जी ग्रामसभा के प्रस्ताव के आधार पर चल रहे कोल खनन की जांच की मांग की थी जिसकी सुनवाई करते हुए अनुसूचित जनजाति आयोग ने कलेक्टर सरगुजा से राज्यपाल एवं मुख्य सचिव के आदेश के बाद हुए फर्जी ग्राम सभा की पूरी जांच रिपोर्ट मांगी थी, जो कई बार मांगने के बाद भी नहीं मिली। आयोग के अध्यक्ष भानूप्रताप सिंह ने आज सरगुजा संभाग के कमिश्नर एवं डीएफओ अंबिकापुर को तलब किया और जांच की फाईल मांगी। लेकिन 3 घण्टे से अधिक समय तक सर्किट हाउस में बैठे दोनों अधिकारियोें ने इस संबंध में कुछ नहीं बोला। दोनों मौन साधे बैठे रहे। जब आयोग अध्यक्ष ने फटकार लगायी और कहा कि जब तक जांच रिपोर्ट नहीं मिलती आगे की कटाई नहीं हो सकती। तब कहीें जाकर कल तक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने एवं तब तक कटाई को रोकने की बात कमिश्नर सरगुजा ने सबके सामने कही।
पुलिसिया कार्रवाई पर जमकर नाराज हुए ग्रामीण
मामले में जंगल कटाई का विरोध कर रहे ग्रामीणों को उठा लेने के पुलिसिया कार्यवाही पर भी खूब नाराज़गी देखी गई। उपस्थित ग्रामीणों ने कहा कि आदिवासी अधिकारी और आदिवासी मुख्यमंत्री जब आदिवासियों के हितों की बात ही नहीं कर सकते और उनकी परम्परा संस्कृति को ही नहीं समझ सकते तो फिर अपने पद पर बने हुए क्यों है, दूसरे के इशारे पर कार्य करने से अच्छा है कि अपने पदों से इस्तीफा दे दें।
बहाना बनाते रहे डीएफओ, आयोग अध्यक्ष हुए नाराज, फिर दौड़ते पहुंचे कमिश्नर के साथ
अजजा आयोग अध्यक्ष ने जब डीएफओ से पूछा कि अब तक कितना पौधोरोपण अडानी अथवा राजस्थान सरकार की एजेंसी द्वारा किया गया है, रिपोर्ट दीजिये। जिसपर डीएफओ ने पहले तो अपने एक मातहत को भेज कर मामले से दूरी बनानी चाही। जब आयोग के अध्यक्ष ने उससे बात करने से इंकार कर दिया तो डीएफओ ने पहले उदयपुर क्षेत्र में होने का बहाना बनाया, फिर कमिश्नर ने कहा कि उनकी तबियत खराब है। लेकिन फिर जब आयोग के अध्यक्ष सख्त हुए तो कमिश्नर स्वयं डीएफओ के साथ सर्किट हाउस में पहुंच गए। मौके पर डीएफओ न तो आयोग अध्यक्ष के प्रश्नों का जबाब दे सके और न ही उदयपुर क्षेत्र के प्रभावित लोगों के सवालों का। डीएफओ ने पेड़ लगाने की जो जानकारी लाकर आयोग अध्यक्ष को दी उसमें न तो किसी का हस्ताक्षर था और न ही कोई दिनांक और पत्र क्रमांक का उल्लेख। भड़के आयोग के अध्यक्ष ने कहा मैं इसे ही अभी मिडिया के सामने प्रस्तुत करूंगा और आप दिखाना कहां-कहां पेड़ लगा है, मैं स्वयं जंगल चलूंगा देखने। तब अपनी फजीहत होती देख डीएफओ ने माफी मांगते हुए अपडेट पत्र प्रस्तुत करने का समय मांगा।
हसदेव अरण्य क्षेत्र के कोल खदानों की पूरी कहानी
जिस हसदेव क्षेत्र की लगातार बात होती है उस पूरे भाग में लगभग 23 कोयला की खदानें मिली हुई हैं। यह हसदेव अरण्य क्षेत्र छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा, सरगुजा एवं सूरजपुर में फैला हुआ है। शुरूआती दौर में चोटिया कोल ब्लॉक जो कि कोरबा जिले के अंतर्गत आता है, यहां कोयला उत्पादन शुरू हुआ। जो अभी भी चल रहा है। वहीं दूसरी खदान परसा ईस्ट केते बासेन है जिसमें सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत गांव एवं जंगल मिला कर इस खदान में लगभग 762 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ। इस खदान को 2027 तक चलाया जाना था, किन्तु यहां से कोयले का उत्पादन पहले ही कर लिया गया है। जो नियमतः सही नहीं है। राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को यह खदान आवंटित हुई थी। जिसे राजस्थान सरकार ने उत्खनन का ठेका अडानी कंपनी को दिया है। कंपनी का कहना है कि यहां पर अब कोयला नहीं बचा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में मई 2023 में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने यह हलफनामा दाखिल किया था कि अभी यहां इतना कोयला है कि 20 सालों तक राजस्थान को कोयला दिया जा सकता है। किन्तु कंपनी का कहना है कि कोयला इतना अंदर है कि इसे निकाला नहीं जा सकता। जबकि सरगुजा में ही स्थिति एसईसीएल की कोयला खदानों से काफी अंदर से कोयला निकाला जा रहा है। यदि यहां पर अडानी कंपनी अंदर से कोयला निकालती है तो उत्पादन खर्च अधिक होगा, जिसके कारण नये खदानों पर इनका झुकाव है। वहीं इस कोयला उत्पादन या उत्खन्न वाली कंपनी को केवल 70 प्रतिशत कोयला ही राजस्थान सरकार को देनी है बाकि के 30 प्रतिशत कोयला डिफाल्ट बताकर उसके हिस्से में आता है।
वहीं इसी खदान में दूसरा है परसा ईस्ट केते बासेन का फेस-2 जिसमें लगभग 2700 हेक्टेयर का अधिग्रहण होना है। जिसमें से 1136 हेक्टेयर केवल जंगल है बाकि गांव और अन्य क्षेत्र हैं। जिसके लिये 134 हेक्टेयर की अनुमति पहले मिल चुकी है और बताया जा रहा है कि 74 हेक्टेयर की अनुमति अभी और मिली है जिसमें लगभग 11 हजार पेड़ काटे जायेंगे।
तीसरी खदान है परसा कोल ब्लॉक जिसमें हरिहरपुर एवं फतेहपुर गांव प्रभावित होने हैं। इस में लगभग 850 हेक्टेयर जमीन जानी है। जिसके विरोध में मार्च 2022 से वहां के ग्रामीण लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
चौथा एक और कोल ब्लॉक है जिसे अनुमति मिली है वह है केते एक्सटेंशन जिसके लिये अभी हाल ही में जनसुनवाई भी हुई है। इस कोल ब्लॉक में 1700 हेक्टेयर जमीन जायेगी, जिसमें सर्वाधिक 98 प्रतिशत हिस्सा जंगल का जाना है। सभी चारों खदानों को मिला लें तो 10 लाख से अधिक पेड़ कटेंगे।
क्षेत्र में लागू है पेशा कानून
सरगुजा संभाग के सरगुजा जिला अंतर्गत ये सभी ग्राम पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत आते हैं और यहां पेशा कानून लागू है। यहां पर ग्रामसभा वहां के लोगों की उपस्थिति में होनी चाहिये किन्तु यहां पर ग्राम सभा भी पुलिस, एसडीएम और तहसीलदार की उपस्थिति में होती है। इसके बाद जनसुनवाई में भी ग्रामीण लगातार विरोध करते हैं। बावजूद सहमति बता दी जाती है।
खबरें और भी..