अंबिकापुर @thetarget365 सरगुजा संभागायुक्त जीआर चुरेंद्र अपनी रिटायरमेंट की उलटी गिनती शुरू होने के साथ ही चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। रिटायरमेंट के ठीक पहले ऐसा लग रहा है कि उन्होंने आदेश पलटने का ‘ऑफिशियल हॉबी’ बना लिया है। हाल ही में उन्होंने सरगुजा कलेक्टर के आदेश को पलटते हुए मंडल संयोजक की कुर्सी का मालिक बदल दिया। अब सुरेंद्र सिंह की जगह टीएलबी कमलेश कुमार सिंह मंडल संयोजक बन गए हैं।
कलेक्टर का आदेश पलटा, सवालों के घेरे में कमिश्नर
कलेक्टर सरगुजा ने सुरेंद्र सिंह को मंडल संयोजक बनाया था, लेकिन कमिश्नर जीआर चुरेंद्र ने 6 दिसंबर को आदेश निकालते हुए इस फैसले को पलट दिया। अब सवाल उठने लगे हैं कि रिटायरमेंट से कुछ ही दिन पहले कलेक्टर के आदेश में बदलाव करने की ऐसी क्या जल्दी थी?
‘फैसलों के जादूगर’ हाई कोर्ट में फेल!
चुरेंद्र साहब का जशपुर का एक और फैसला हाई कोर्ट में धूल चाट चुका है। हिंदी लेक्चरर को प्रभारी बीईओ की कुर्सी देने के उनके फैसले को चुनौती दी गई और हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कमिश्नर का आदेश न सिर्फ गलत था, बल्कि नियमों के खिलाफ भी था।
रिटायरमेंट से पहले क्यों दिखा ‘जोश’?
अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर रिटायरमेंट से पहले ऐसा कौन सा ‘जोश’ सवार है कि संभागायुक्त एक के बाद एक फैसले पलटने में लगे हैं। क्या यह उनकी ‘रिटायरमेंट तोहफा सीरीज’ है या फिर अपने फैसलों के जरिए चर्चा में रहने का आखिरी मौका?
जो भी हो, संभागायुक्त जीआर चुरेंद्र अपने ‘आदेश पलट अभियान’ के जरिए रिटायरमेंट से पहले सुर्खियां बटोरने में पूरी तरह सफल हो गए हैं।
विष्णुदेव साय की सुशासन की सरकार को बट्टा लगा रहे हैं ये अधिकारी
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में सुशासन का दावा किया जाता है, लेकिन कुछ अधिकारी इस दावे को तार-तार करने पर तुले हुए हैं। सरगुजा संभागायुक्त जीआर चुरेंद्र का हालिया कारनामा इसका ताजा उदाहरण है।
कलेक्टर के आदेश को पलटना, हाई कोर्ट में फैसले रद्द होना, और रिटायरमेंट से ठीक पहले विवादित फैसले लेना—ये सब सुशासन की छवि पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। एक तरफ सरकार बेहतर प्रशासन का दावा करती है, तो दूसरी तरफ अधिकारी अपने मनमाने फैसलों से सरकार की साख पर बट्टा लगाने का काम कर रहे हैं।