■ दोषियों पर कार्रवाई की अनुशंसा, करोड़ों रुपये के गबन का आरोप
अंबिकापुर @thetarget365 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक अंबिकापुर में वर्ष 2017-18 और 2018-19 के दौरान दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की अवैधानिक नियुक्ति और वेतन भुगतान का गंभीर मामला सामने आया है। इस संबंध में उपायुक्त, सरगुजा संभाग ने सहकारिता एवं पंजीयन संस्थाएं रायपुर के आयुक्त को जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है।
सरगुजा संभाग के आयुक्त द्वारा अनुमोदित इस पत्र को उपायुक्त, सहकारिता एवं पंजीकरण संस्थाएं रायपुर को भेजा गया है। उपायुक्त ने जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट किया है कि वर्ष 2010 से 2017 तक पदस्थ सभी मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को स्वेच्छाचारिता (मनमानी) का दोषी पाया गया है।
जांच समिति ने की पुष्टि
उक्त मामले की जांच के लिए 17 अक्टूबर 2024 को छह सदस्यीय समिति गठित की गई थी, जिसने बैंक में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की नियुक्ति और वेतन भुगतान से संबंधित दस्तावेजों की जांच की। जांच के दौरान पाया गया कि संस्थान के प्रभारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने बिना किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति के लगभग 30 कर्मचारियों की अवैध रूप से नियुक्ति की। इन कर्मचारियों को जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के प्रधान कार्यालय और उसकी विभिन्न शाखाओं में तैनात किया गया था।
इतना ही नहीं, इन कर्मचारियों को नियम विरुद्ध तरीके से हर माह लाखों रुपये का भुगतान किया गया, जिससे अब तक संस्था को करोड़ों रुपये की हानि हो चुकी है।
34 कर्मचारियों की हुई थी नियुक्ति, प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं
जांच में यह भी सामने आया कि वर्ष 2010 से 2017 के बीच बैंक के विभिन्न मुख्य कार्यपालन अधिकारियों ने बिना किसी अधिसूचना या पारदर्शी प्रक्रिया के कंप्यूटर ऑपरेटरों को दैनिक मजदूरी पर नियुक्त किया। इनकी संख्या अब बढ़कर 34 हो चुकी है।
आश्चर्यजनक रूप से, इस नियुक्ति के बारे में न तो संचालक मंडल को सूचित किया गया, न ही पंजीयन सहकारी संस्थान रायपुर को जानकारी दी गई। जांच रिपोर्ट में इस अनियमितता को गंभीर बताते हुए, वर्ष 2010 से 2017 तक कार्यरत सभी मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को दोषी ठहराया गया है।
राजनांदगांव में भी सामने आ चुका है ऐसा मामला
गौरतलब है कि राज्य के जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, राजनांदगांव में भी इसी प्रकार की अनियमितताएं सामने आई थीं। वहां के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को स्वेच्छाचारिता से नियुक्ति और वेतन भुगतान के कारण निलंबित कर दिया गया था।
सरगुजा के मामले में भी संयुक्त पंजीयन अधिकारी की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। जांच रिपोर्ट के अनुसार, अवैध रूप से नियुक्त किए गए अधिकांश कर्मचारी बैंक के पदस्थ कर्मचारियों के नाते-रिश्तेदार हैं।
क्या होगा आगे ?
अब मामला सहकारिता एवं पंजीयन संस्थाएं रायपुर के आयुक्त के पास पहुंच चुका है। उम्मीद की जा रही है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और संस्थान को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए कदम उठाए जाएंगे।