अंबिकापुर। जनसंख्या के मामले में उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा संसदीय क्षेत्र में गोंड़ जाति के बाद दूसरे स्थान पर आने वाला व वर्षों से राजनैतिक उपेक्षा का दंश झेल रहा चेरवा समाज भी अब लोकसभा चुनाव में अपने प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर मुखर हो गया है। समाज के लोग संगठित होकर सामने आ रहे हैं।
इस विषय को लेकर समाज के संरक्षक बासुदेव माझी ने बताया कि उनके समाज के लोग सरगुजा संभाग के सभी जिलों जैसे अंबिकापुर, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, मनेंद्रगढ़ व जशपुर में निवास करते हैं। सभी जिलों को मिलाकर उनके समाज की जनसंख्या लगभग ढाई लाख से भी ऊपर है जो कि सरगुजा संभाग के सर्वाधिक आबादी वाले गोंड़ समाज के मुकाबले दूसरे नंबर पर है। पर आज तक इतनी बड़ी आबादी वाले समाज के किसी भी व्यक्ति को किसी भी राजनैतिक पार्टी ने विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं दिया। माझी ने बताया कि चेरवा समाज के लोगों की अत्यंत ही पिछड़ी जाति में गिनती होती है। और यह जाति आज तक इसलिए पिछड़ी हुई है क्योंकि इस जाति के लोगों को हमेशा से ही राजनैतिक दलों ने हाशिए पर ढकेलने का काम किया है पर अब चेरवा समाज लोकसभा चुनाव में अपने समाज का भी प्रतिनिधित्व चाहता है। वहीं चेरवा समाज के अंबिकापुर जिलाध्यक्ष महेंद्र सरजाल, सूरजपुर जिलाध्यक्ष शिवचरण बघेल व बलरामपुर जिलाध्यक्ष करम दयाल का कहना है कि राजनैतिक दलों द्वारा विधानसभा व लोकसभा चुनाव में हमेशा से ही गोंड़ व कंवर जाति के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाता है पर चेरवा समाज के लोगों को आज तक राजनीति के मंच में कभी भी उचित स्थान नहीं मिल सका है जिसके कारण चेरवा समाज खुद को अन्य समाजों की अपेक्षा अलग थलग व दबा कुचला महसूस करता है जो कि काफी पीड़ादायक स्थिति है इस पीड़ा से निकलने के लिए हमारे समाज के लोग भी अब संगठित होकर आने वाले लोकसभा चुनाव में अपने प्रतिनिधित्व की उचित मांग को पूरी प्रमुखता से उठा रहे हैं जिसे राजनैतिक दलों द्वारा अवश्य ही सुना जाना चाहिए हमारे समाज को भी अन्य समाजों की तरह आगे बढ़ने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
★ आदिवासी पुजारियों में होती है गिनती
बता दें कि चेरवा समाज के लोगों को आदिवासी पुजारी यानी बैगा के रूप में जाना जाता है। इस समाज के लोग आज भी सरगुजा संभाग के कूदरगढ़, रामगढ़, बच्छराज कुंवर व खोपा जैसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों पर पुजारी का काम कर रहे हैं। साथ ही फसल की बुवाई, कटाई से लेकर आदिवासियों के शादी विवाह व धार्मिक अनुष्ठानों में भी इस समाज के लोगों को पूजापाठ करवाने के लिए बतौर पुजारी के रूप में आमंत्रित किया जाता है।