अंबिकापुर (thetarget365)। पर्यावरण संबंधी विश्व के सर्वश्रेष्ठ और सुप्रसिद्ध ग्रीन नोबेल पुरस्कार (गोल्डमैन पर्यावरणीय अवॉर्ड) के लिए संयोजक ‘छत्तीसगढ़ बचाओ’ आंदोलन की संयोजक आलोक शुक्ला को चुना गया है।
यह पुरस्कार हर वर्ष दुनिया के छह महाद्वीपों से एक प्रतिनिधि को दिया जाता है। इस वर्ष एशिया महाद्वीप से आलोक शुक्ला को चुना गया है। पिछले दो दशकों से छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों को बचाने, और सामाजिक न्याय के लिए तत्पर कई जन-संघर्षों में आलोक शुक्ला की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चाहे स्पंज आयरन उद्योग के प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष हो या ऐतिसाहिक पेंडरावन जलाशय को बचाने की लड़ाई या फिर किसान आंदोलन इन सभी में इनका विशेष योगदान रहा है। पिछले एक दशक विशेष रूप से “छत्तीसगढ़ के फेफड़े” कहे जाने वाले सघन, समृद्ध और जैव-विविधता से परिपूर्ण हसदेव अरण्य वन क्षेत्र और उससे जुड़ी आदिवासियों की आजीविका, जीवन और संस्कृति को बचाने के ऐतिहासिक संघर्ष के नेतृत्वकारी साथी हैं। इसलिए वास्तव में यह सम्मान छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को बचाने संघर्षरत प्रत्येक आदिवासी-किसान-मज़दूर का सम्मान है, जिससे सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय की आवाज़ बुलंद करने में जन-संगठनों को मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि हसदेव के आंदोलन ने लगातार कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीकों से और संवैधानिक शक्तियों और कानूनी प्रावधानों का उपयोग कर अपनी आवाज़ बुलंद की। पिछले 12 वर्षों से लगातार प्रस्तावित 23 कोयला खदानों से होने वाले विनाश के विरुद्ध, अपने जल-जंगल-ज़मीन को बचाने, आदिवासी समुदाय-विशेष रूप से हसदेव की महिलाओं ने हर चुनौती का डट कर सामना किया और प्रत्येक खदान क्षेत्र में प्रत्येक इंच ज़मीन पर और प्रत्येक पेड़ के लिए मज़बूती से संघर्ष किया। उन्होंने लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से हर-संभव प्रयास किए, सारे सरकारी और राजनैतिक दरवाज़े खट-खटाए, अनेकों धरना-प्रदर्शन-सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए और 300 किमी लंबी रायपुर तक पदयात्रा निकाली। संघर्ष के इस रास्ते में हसदेव के आंदोलन को भारी जन-समर्थन भी मिला और समाज का हर वर्ग शहरी-ग्रामीण, जाति-वर्ग, देश-प्रदेश की सीमाओं के परे हसदेव को बचाने की मुहीम से जुड़ा। इसी संघर्ष के कारण अक्टूबर 2021 में 1995 वर्ग किमी फैला लेमरू हाथी रिज़र्व की अधिसूचना हुई। इसके बाद लेमरू रिजर्व की सीमा में आने वाले 17 कोल ब्लॉक में खदान-संबंधित सभी प्रक्रियाओं पर रोक लगाई गई जिसमें यहाँ पूर्व-आवंटित हो चुके कोरबा जिले के पतुरिया गिद्मुड़ी एवं मदनपुर साऊथ कोल ब्लॉक भी शामिल हैं। इसके पश्चात जुलाई 2022 में छत्तीसगढ़ विधान सभा में सर्व-सम्मति से अशासकीय संकल्प भी लिया गया जिसके अनुसार सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन-मुक्त रखने का निर्णय लिया गया।
हालांकि हसदेव पर संकट के काले बादल अभी छँटे नहीं हैं, सरगुजा क्षेत्र में परसा और पीईकेबी खदानों में अभी भी जंगल-कटाई और विस्थापन की कोशिश है, जिसे बचाने के लिए यहाँ संघर्ष अभी भी जारी है और बीते 800 दिनों से अधिक से अनिश्चित धरना-प्रदर्शन और विरोध अभी भी जारी है। निश्चित ही ग्रीन नोबेल पुरस्कार से सम्पूर्ण हसदेव क्षेत्र को बचाने की मुहिम को बल मिलेगा और हसदेव की आवाज़ पूरे विश्व में बुलंद होगी।
यह पुरस्कार शायद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हसदेव के आन्दोलन ने दुनिया-भर में यह उम्मीद भी जगाई है, कि एक शोषित-वंचित वर्ग, केवल साफ नीयत और लोकतान्त्रिक तरीकों से दुनिया की सबसे ताकतवर कार्पोरेट की लूट और हिंसा का, मजबूती से मुकाबला कर सकता है। वह विकास के नाम पर हो रहे विनाश को चुनौती दे सकता है। छत्तीसगढ़ के परिदृश्य में हम देखते हैं कि हसदेव जैसे कई आंदोलन जगह-जगह पर लगातार जारी हैं। सरगुजा से लेके रायगढ़ जशपुर तक वन-संसाधनों को बचाने, सिलगेर से लेके बैलाडीला तक दमन और हिंसा के खिलाफ, जांजगीर चांपा धरसीवा बिलासपुर और कोरबा में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ, राजनंदगांव नया राजधानी और सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में संघर्ष जारी है।