अंबिकापुर। मैनपाट को पर्यटन नक्शे में स्थापित करने पिछले कई वर्षों से मैनपाट महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। मैनपाट के रोपाखार में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय शुक्रवार दोपहर महोत्सव का शुभारंभ करेंगे।वर्तमान व्यवस्था में अगले वर्ष यदि मैनपाट महोत्सव बंद हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सूत्रों के अनुसार सरगुजा के ईमानदार कलेक्टर विलास भोस्कर ने वर्तमान व्यवस्था में अगले वर्ष से मैनपाट महोत्सव आयोजित कराने में असमर्थता जता दी है। उन्होंने अफसरों से यहां तक कह दिया है कि पिछले वर्षों में जैसा होता है वैसा इस बार कर लीजिए लेकिन अगले वर्ष से इस व्यवस्था में महोत्सव नहीं मनाया जा सकता। आपको लग रहा होगा कि इतने बड़े आयोजन में यह बातें क्यों? इसका एकमात्र कारण फंड की कमी है। दरअसल इतने बड़े महोत्सव के लिए सारी राशि की व्यवस्था प्रशासन को करनी पड़ती है क्योंकि शासन स्तर से इसके लिए राशि प्रदान नहीं की जा रही है। ऐसे में स्थानीय व्यवस्था के अनुरूप राशि की व्यवस्था के लिए वसूली ही एकमात्र उपाय रहता है। इस वर्ष भी धनराशि की व्यवस्था के लिए अलग-अलग विभागों को जबाबदारी दी गई थी।
मैनपाट महोत्सव के लिए सभी क्रशर संचालकों से 50 हजार तक की राशि वसूल की गई है। कोरोना काल से ही टूट चुके ईंट भट्ठा संचालकों से भी 50-50 हजार रुपये देने का दबाब दिया गया था लेकिन ईंट भट्ठा संचालकों ने इतनी बड़ी राशि देने से मना कर दिया। अफसरों ने भरी बैठक में उनपर दबाब बनाया। रकम नहीं देने पर अघोषित रूप से जांच, कार्रवाई की चेतावनी दी गई। ऐसे में ईंट भट्ठा संचालकों ने 25-25 हजार रुपये देने सहमति दी। उनसे भी यह रकम वसूल की गई है।
सूत्रों के अनुसार राइस मिल संचालकों से एक-एक लाख रुपये की मांग की गई थी। उनसे यह राशि ली भी गई है। अफसर इस दावे से इंकार कर रहे हैं। दलील दी जा रही है कि राइस मिल संचालकों के साथ खाद्य विभाग, मार्कफेड और स्टेट वेयर को महोत्सव में तीन दिनों तक सभी के लिए भोजन-नाश्ता की जबाबदारी दी गई है। इसमें वीआईपी और आमंत्रित तथा स्थानीय कलाकारों के नाश्ता, भोजन की भी व्यवस्था शामिल है। कुल मिलाकर जुगाड़ और वसूली की व्यवस्था में महोत्सव आयोजन को लेकर स्वच्छ छवि और ईमानदार अफसर भी खुद को पृथक करने की इच्छा जता चुके है। जिले के मुखिया कलेक्टर इस व्यवस्था के विरुद्ध रहे हैं। चूंकि उनके कार्यकाल का पहला आयोजन है इसलिए न चाहते हुए भी उन्होंने अफसरों को निर्देशित कर दिया है कि अब तक जो भी होता रहा है, कर लीजिए लेकिन अगले वर्ष ऐसे में आयोजन को लेकर विचार करना पड़ेगा।
50-50 हजार रुपये का कथित चंदा देने वाले क्रशर संचालकों का आरोप है कि इतनी बड़ी राशि देने के बाद जांच नाकों में दूसरे विभाग के अधिकारी वाहनों की जांच के नाम पर वसूली कर रहे हैं। उनका दावा है कि महोत्सव के लिए उन्हें भी टारगेट दिया गया है। जब तक वे वसूली नहीं करेंगे तो राशि की व्यवस्था कैसे कर पाएंगे।
मैनपाट महोत्सव की प्रसिद्धि पर दाग लग चुका है। छत्तीसगढ़ के कलाकार नितिन दुबे ने आयोजन से पहले इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने बाहरी कलाकारों पर लाखों रुपये खर्च करने पर भी सवाल उठाया। छत्तीसगढ़ी अस्मिता, मान-सम्मान को लेकर राजनीतिक दलों के दावे के विपरीत उत्तर प्रदेश और भोजपुरी कलाकारों को 10 से 15 लाख रुपये देने तथा स्थानीय कलाकारों को 10 से 20 हजार रुपये देने पर भी आपत्ति की है। उनके पोस्ट के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया था। आनन-फानन में इस कलाकार को मैनेज करने का प्रयास सफ़ल हुआ है।
मैनपाट महोत्सव में वाकई में स्थानीय कलाकारों के साथ नाइंसाफी होती है।वर्ष 2012 में जब कार्निवल का शुभारंभ हुआ तब बजट 25 हजार रुपये था।तब स्थानीय स्कूली छात्र-छात्राओं के साथ लोकल कलाकारों को साथ लेकर कार्यक्रम हुआ।उसके बाद शनैः शनैः इसका स्वरूप बढ़ता गया।आज कार्यक्रम का बजट 10 करोड़ से ऊपर है।
यह कार्यक्रम प्रमुख रूप से अधिकारियों का मनोरंजन का पिकनिक का कार्यक्रम रह गया है।इसमें बाहरी कलाकारों को बड़ी-बड़ी रकम दी जाती है।कुछ कलाकर जो स्थानीय होते हैं उन्हें आने जाने के।लिए वाहन और पांच से दस मिनट का समय और भोजन तक ही सीमित कर दिया जाता है।
स्थानीय कलाकारों को नाममात्र का समय और नाममात्र की सुविधाएं ही दी जाती हैं।
मूलरूप से मैनपाट महोत्सव अधिकारियों के पिकनिक और राजनेताओं की उपस्थिति में पिकनिक का बड़े स्तर पर आयोजन ही है।