Jharkhand Vulture Center: झारखंड राज्य में गिद्धों की लगातार घटती संख्या को बचाने की दिशा में एक बड़ी और सकारात्मक पहल की गई है। राज्य का पहला गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र जल्द ही रांची के पास शुरू होने जा रहा है, जिससे इन गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षियों को नई जिंदगी मिलने की उम्मीद जगी है। राज्य सरकार ने वन विभाग के इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के साथ तकनीकी सहायता के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर जल्द ही हस्ताक्षर किए जाएंगे। वन विभाग के मुख्य संरक्षक (वन्यजीव) एसआर नटेश ने जानकारी दी, “सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में BNHS के साथ एमओयू के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई। हम कोशिश करेंगे कि अगले साल तक केंद्र पूरी तरह चालू हो जाए।”
Jharkhand Vulture Center: रांची के मूटा में स्थित है केंद्र; नौकरशाही की अड़चनें हुईं दूर
यह केंद्र रांची से लगभग 36 किलोमीटर दूर मूटा नामक स्थान पर स्थापित किया गया है। केंद्र सरकार ने इसे 2009 में मंजूरी दी थी, और 2013 में 41 लाख रुपये की लागत से मुख्य पिंजरा, छोटा अस्पताल और 2 केयर यूनिट जैसी बुनियादी संरचनाएँ पूरी कर ली गई थीं।हालांकि, नौकरशाही अड़चनों और केंद्र सरकार के वन-पर्यावरण मंत्रालय से गिद्ध रखने की अनुमति न मिलने के कारण यह केंद्र अब तक शुरू नहीं हो पाया था।
अब, BNHS केंद्र को तकनीकी सहायता प्रदान करेगा और इसकी निगरानी करेगा। एसआर नटेश ने बताया कि वे जल्द ही देश के अन्य गिद्ध केंद्रों से संपर्क करेंगे, ताकि वहाँ से कुछ गिद्धों को प्रजनन के लिए झारखंड लाया जा सके। इसके अलावा, केंद्र में कुछ मरम्मत का काम बाकी है, जिसके लिए अतिरिक्त फंड की मांग सरकार से की जाएगी।
Jharkhand Vulture Center: गिद्धों की प्रजातियाँ और संरक्षण की स्थिति
गिद्ध वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं, जो उन्हें सर्वोच्च कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। BNHS के झारखंड कोऑर्डिनेटर सत्य प्रकाश ने बताया कि: देश में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 6 प्रजातियां झारखंड में देखी गई हैं: सफेद पीठ वाला गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध, हिमालयी गिद्ध (प्रवासी), मिस्री गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध और सिनेरियस गिद्ध। वन विभाग 15 दिसंबर से राज्य में गिद्धों की गिनती भी शुरू करने जा रहा है, जो बाघ गणना के साथ-साथ होगी। इससे राज्य में गिद्धों की वास्तविक संख्या और वितरण का पता चलेगा।
डाइक्लोफिनेक बना था मौत का कारण, अब बढ़ रही है संख्या
एक समय पूरे देश में बहुतायत में पाए जाने वाले गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट का मुख्य कारण पशुओं के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक थी। गिद्ध जब डाइक्लोफिनेक युक्त मरे पशुओं का मांस खाते थे, तो उनकी या तो किडनी फेल हो जाती थी, या उनकी प्रजनन क्षमता खत्म हो जाती थी।
सत्य प्रकाश ने बताया, “पूरे देश में अब करीब 10 हजार गिद्ध बचे हैं।” हालांकि, झारखंड के लिए राहत की बात यह है कि ताजा सर्वे के अनुसार राज्य में इनकी संख्या पिछले कुछ सालों में बढ़कर 400 से 450 हो गई है। ये मुख्य रूप से हजारीबाग और कोडरमा जिले में मिलते हैं, लेकिन अब राज्य के दूसरे इलाकों में भी दिखने लगे हैं।
संरक्षण के प्रयासों को मजबूती देने के लिए कोडरमा जिले में एक ‘गिद्ध रेस्तरां’ भी शुरू किया गया है, जहाँ गिद्धों को डाइक्लोफिनेक मुक्त मरे पशुओं का मांस खिलाया जाता है। अब नए प्रजनन केंद्र के शुरू होने से उम्मीद है कि झारखंड में गिद्धों की आबादी को और मजबूती मिलेगी।
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