वरिष्ठ मौसम विज्ञानी एएम भट्ट ने अपने एक आलेख में देश में मतदान प्रतिशत कम होने पर चिंता जताई है। उन्होंने इसे मौसम से भी जोड़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी बाजपेयी का भी जिक्र किया है। आइये जानें क्या लिखा है मौसम विज्ञानी एएम भट्ट ने….!
“किसी भी लोकतांत्रिक देश जहां सत्ता का निर्धारण उस देश की जनता करती है, वहां मतदान के प्रति नागरिकों के रुझान में कमी आने को एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं कहा जा सकता। आने वाले पांच वर्ष की अवधि के लिए हम देश की सत्ता जिन हाथों में सौंपते हैं वह देश के भविष्य की दशा-दिशा का निर्धारक होता है। यदि पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के शब्दों के आलोक में हम देख पाएं तो ज्ञात होगा कि उन्होंने कहा है कि ‘सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए।‘ इसे अटल जी की बिल्कुल ही जायज चिंता कही जाएगी। मैं तो यह भी कहता हूं कि देश को रहने के लिए बल्कि स्वस्थ और विकसित रहने के लिए एक सार्थक नेतृत्व की सरकार की दरकार होती है और उस सरकार के चयन का तरीका हमारा मतदान ही है। हम जितना बढ़-चढ़ कर इस पर्व में अपने–अपने मतों की आहुति देंगे, हमारा लोकतंत्र उतना ही अधिक मजबूत होता जाएगा।
आज जब मतदान के बाद जब न्यून मतदान के आंकड़े हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है तो सच मानिये कहीं न कहीं एक चिंता और एक निराशा का भाव उठता है। महज 50-60 प्रतिशत के मतदान के आंकड़ों से बनी सरकार में मतदान से वंचित रह गए या मतदान नहीं करने वाले शेष रहे गए 40-50 प्रतिशत मतदाताओं के राय तो अपरिभाषित ही रह जाएंगे। हमें यह अवश्य समझना चाहिए कि हम सीमाओं पर बंदूक ले कर खड़े रह कर अपनी देशभक्ति का जज्बा प्रकट नहीं कर पाते तो क्या हुआ, हमें अपनी राष्ट्रभक्ति को प्रकट करने की एक युक्ति हमारा मतदान का अधिकार भी है। इस अधिकार से हमें वंचित तो कदापि नहीं रहना चाहिए और हमें मतदान अवश्य करना चाहिए। परन्तु कई बार कई अपरिहार्य कारणों से भी जनता लोकतंत्र के इस पर्व में भागीदार बनने से वंचित रह जाती है। जैसे मतदान दिवस को ही यदि किसी मतदाता को कहीं अन्यत्र प्रवास पर रहना पड़ जाए या फिर कोई अपने मतदान स्थल से दूर किसी दूसरे स्थल पर अपनी जीविकोपार्जन में रत हो और सिर्फ अपने मतदान के लिए उसे आना पड़े या नौकरी पेशा को छुट्टी न मिल पाए, आवागमन का साधन न मिले या इस तरह की कोई अन्य समस्या उपस्थित हो जाए तो भी एक मतदाता अपने मतदान से वंचित हो रह जाता है। फिर भी ऐसे मतदाताओं के इतर यदि शेष मतदाता अपना मतदान करें तो भी मतदान प्रतिशत 90 प्रतिशत के ऊपर ही होना चाहिए।
मतदाताओं के मतदान से दूर रह जाने के जो संभावित कारण प्रतीत होते हैं उनमें कुछ तो ऐसे मतदाता हैं जिनमें मतदान के लिये एक निरापद का भाव दिखता है और वे किसी निजी बहानों के आड़ में छुपे रह कर मतदान के लिए प्रेरित नहीं होते। दूसरा मौसम की प्रतिकूलता भी एक बड़ा अवरोध प्रतीत होता है। अप्रैल–मई की दुपहरी अति उष्ण हो जाती है और तापमान 40℃ के ऊपर-नीचे लगातार विचलन करता रहता है। अनेक क्षेत्र लू की लहरों से प्रभावित रहते हैं। इस प्रतिकूल परिस्थिति में अधिकतर महिलाओं और उम्र दराज मतदाता के मतदान कर्म में उदासीनता का संचार होता है और उनका रुझान लोकतांत्रिक गठन में अर्थहीन रह जाता है। इस प्रक्रिया में दूसरी बाधा की भूमिका में मतदाताओं की लंबी कतारें भी हैं। एक मतदाता के मतदान में 1 से 2 मिनट का समय व्यय होता है। यदि औसत 1 मिनट भी मान लें तो एक घण्टे में 60 मत और एक दिन में प्रातः 7 बजे से सायं 5 बजे तक 10 घण्टों में एक बूथ पर 600 मत। देखना होगा कि किसी मतदान क्षेत्र की जनसंख्या और मतदान केंद्रों की संख्या के अनुपात परिभाषित हैं या नहीं? ग्रामीण क्षेत्रों में जहां विरल जनसंख्या के साथ मतदान केंद्रों से मतदाता के निवास की दूरी भी मतदान की प्रक्रिया की सफलता में बाधक बन जाती है। लेकिन महाकुंभ की व्यवस्थाओं में कमी की दुहाई दे कर इस पर्व में अपनी भागीदारी से भागना को भी तो उचित नहीं ठहराया जा सकता। देव के दिव्य दर्शन के लिए देवस्थल की नंगे पांव पैदल यात्रा तो करनी ही पड़ती है। जनमानस की मतदान में उदासीनता के कारण को दूर करना देश के तंत्र की व्यवस्था है तो पांच वर्ष के अंतराल में होने वाले इस महापर्व में अपनी उपस्थिति के लिए मतदाताओं में भी स्वप्रेरणा का संचार आवश्यक है।
आज जब हम आधुनिक विज्ञान के युग में हैं और अपने अनेकानेक गतिविधियों में आधुनिक यंत्रों के माध्यम से अपने सभी प्रकार के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, यहां तक कि घर बैठे ही विभिन्न परीक्षाओं, मुद्रा विनिमय से लेकर विभिन्न गोपनीय कार्यों में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहे हैं तो फिर चानावी प्रक्रिया इससे अछूता क्यों है? कम से कम उन मतदाताओं के लिए जो मतदान के दिन अपने क्षेत्र से दूर हैं, जो किन्ही कारणों से मतदान स्थल तक पहुंचने में असमर्थ हैं, जो अपनी रोजगारी और नौकरी के पेशे से आबद्ध हैं या जो भारतीय मूलनिवासी हैं लेकिन किसी कारण से दूसरे देश में रह रहे हैं, क्या इन्हें भी मतदान की व्यवस्था में भागीदारी का अधिकार नहीं मिलना चाहिए?
“मतदान के कार्य व्यवस्था में बाधक इन त्रुटियों को यदि सुधारने का प्रयत्न किया जाए और मतदान के लिए मतदाताओं में प्रेरणा के उपाय किये जाएं तो मतदान प्रतिशत का ग्राफ निश्चित ऊपर जाएगा और लोकतंत्र की काया स्वस्थ, सुंदर और सुदृढ नजर आएगी।”