अंबिकापुर @thetarget365 सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर का वह इलाका, जहां कभी बच्चों की हंसी और चूल्हे से उठता धुआं जीवन की हलचल का प्रतीक था, आज खामोशी और दर्द से भर गया है। महामाया पहाड़ श्रीगढ़ क्षेत्र में वन विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने यहां के 117 परिवारों में से 40 से अधिक घर के परिजनों को बेघर कर दिया। इन परिवारों के लिए घर केवल ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं था, बल्कि उनकी खुशियों, संघर्षों और सपनों का बसेरा था।
सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे तड़पते परिवारों का दर्द ऐसा है जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। ठंड से कांपती एक महिला कहती है, “जिस जमीन पर मेरे बच्चों ने पहली बार चलना सीखा, आज उसी जमीन से हमें दूर कर दिया गया। ठंड बढ़ रही है, लेकिन हमारे पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है।” उनकी आंखों से बहते आंसू और आवाज में छिपा दर्द इस सर्द भरी रात की गहरी कहानी बयां करता है।
एक मासूम बच्चा अपनी मां से पूछता है, “मां, अब हमारा घर कहां होगा? हम कहां जाएंगे?” उसकी आवाज़ में छिपा डर और बेबसी वहां खड़े हर व्यक्ति के दिल को चीरकर रख देता है। यह सवाल न केवल उस मां के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चुनौती है—क्या हम इन बच्चों को उनका घर वापस दे पाएंगे?
परिवारों का कहना है कि जब उन्होंने यहां घर बनाए, तो उन्हें सड़क, पानी और बिजली जैसी सुविधाएं दी गईं। “जब घर बना रहे थे, तब किसी ने हमें रोका नहीं। लेकिन अब अचानक हमें बेघर कर दिया गया,” एक व्यक्ति ने रोष भरे स्वर में कहा।
इस पूरे घटनाक्रम ने केवल घरों को नहीं तोड़ा, बल्कि उन सपनों को भी चकनाचूर कर दिया जो इन परिवारों ने वर्षों से सजाए थे। सभी के सामान खुले आसमान के नीचे बिखरे पड़े थे। उनके जीवन की यह त्रासदी क्या केवल कानून का पालन है, या यह मानवता और अधिकारों की उपेक्षा भी है?
यह सवाल उठता है कि इन परिवारों को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं दिया जा सकता था? क्या उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी? ठंड के इस मौसम में खुले आसमान के नीचे तड़पते इन परिवारों की चीखें न केवल प्रशासन, बल्कि समाज से भी न्याय की गुहार लगा रही हैं।
इस ठंड में कांपते मासूम और उनकी मां की आंखों के आंसू हमें एक बार सोचने पर मजबूर करते हैं—क्या हमारा कर्तव्य केवल नियमों को लागू करना है, या मानवता को भी जीवित रखना है? बेघर हुए लोगों ने कहा कि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी कार्यवाही के बाद उनकी सुध तक लेने नहीं आया है।
स्थानीय लोगों ने बेघर हुए परिजनों की पहली रात खूब मदद की। ठंड से बचने आग के अलाव सहित खाने-पीने और सोने के लिए टेंट से बिस्तर की व्यवस्था भी की। साथ ही पहाड़ के नीचे खुले मैदान में बेघर रह रहे लोगों के लिए टेंट से कनात मांगा तेज हवाओं से बचने घेरा भी बनवाया। देर रात तक मददगार युवाओं की टीम लोगों की मदद करते देखी गई।
पढ़ें संबंधित खबरें
न्यायालय के मौखिक आदेश पर तोड़फोड़ की कार्यवाही रुकी, कुछ देर में शुरू होगी सुनवाई
मकानों को तोड़ना इतना जरूरी क्यों – न्यायालय
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट में अर्जेंट हियरिंग के तहत सुनवाई की गई। जज ने पूछा कि लोगों के घरों तो तोड़ना इतना जरुरी क्यों है? इस पर वन विभाग के वकील ने अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने पांच दिन की समय दिया है। डीएफओ और कब्जाधारी दोनों ही अपना-अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखेंगे। इसके बाद आगे का निर्णय होगा।