★ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकार सहित राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और अडानी समूह की दो कंपनियों को नोटिस जारी किया
नई दिल्ली @thetarget365 हसदेव अरण्य को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की सिफारिश के हिसाब से खनन मुक्त करने और संरक्षित करने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार सहित राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और अडानी समूह की दो कंपनियों को नोटिस जारी किया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भूयान की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर यह नोटिस जारी किया है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका के अलावा परसा कॉल ब्लॉक में खनन प्रारंभ न करने की आवेदन पर भी नोटिस जारी किया है, जिसमें यह बताया गया है कि पहले से चालू खदान पीएकेबी का उत्पादन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की वार्षिक आवश्यकता को पूरा कर रहा है और इस कारण भी किसी नए खदान को खोलने की आवश्यकता नहीं है।
आज हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने खंडपीठ को बताया कि उक्त पूरा क्षेत्र केंद्र सरकार के द्वारा ही नोगो क्षेत्र घोषित किया गया था बाद में केंद्र सरकार द्वारा ही इस क्षेत्र को खनन के लिए निश्चित क्षेत्र इन वायलेट भी घोषित किया गया। इसके बाद भी राजस्थान विद्युत उत्पादन और अडानी समूह के खनन के लिए यहां खदानें आवंटित की गई।
सुनवाई में खंडपीठ को बताया गया कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के द्वारा भी इस क्षेत्र को खनन मुक्त रखने की सिफारिश की गई है। उसके बाद भी छत्तीसगढ़ की सरकार और केंद्र सरकार में पीईकेबी खदान के चरण दो और परसा कोयला खदान की अनुमतियां जारी की है। जिसे इस याचिका में चुनौती दी गई है। इस क्षेत्र में खनन होने से चार लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे।
सुनवाई के दौरान राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नादकर्णी और अडानी समूह की कंपनियों की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका के औचित्य पर सवाल उठाया। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए उस आवेदन पर भी नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया है कि पीईकेबी खदान से कोयले की पूरी सप्लाई होने के बाद भी नई खदान बिना किसी वजह खोली जा रही है। मामले में जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है। जिसके बाद इस मामले की आगे सुनवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि इस याचिका के साथ अंबिकापुर के अधिवक्ता दिनेश सोनी की याचिका भी लंबित है। जिसमें राजस्थान और अडानी समूह के बीच हुए अनुबंधों को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि राजस्थान को अपने ही खदान का कोयला बाजार दर से महंगे में मिल रहा है और पूरा मुनाफा और लाभ अदानी समूह ले जा रहा है जो की सरकारी कंपनियों को कॉल ब्लॉक दिए जाने की पॉलिसी के उद्देश्यों के खिलाफ है। साथ ही साथ राजस्थान के द्वारा कुल उत्पादन का लगभग 29% तक कोयला अदानी समूह को मुफ्त में दिए जाने को भी एक बड़ा घोटाला बताया गया है। ऐसे ही अनुबंधों को सुप्रीम कोर्ट पहले कॉल ब्लॉक घोटाले वाले मुख्य मामले के समय निरस्त कर चुका है फिर भी इस प्रकरण में केंद्र सरकार ने राजस्थान और अडानी के बीच पुराने अनुबंध को चालू रखने की छूट दी है जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और स्वयं सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून के खिलाफ है।
गौरतलब है कि हाल ही में इस नई परसा कोयला खदान को खोलने के सरकारी प्रयास के विरोध में हसदेव क्षेत्र के आदिवासियों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया था।