अंबिकापुर @thetarget365 मेडिकल काॅलेज अस्पताल के दंत रोग विभाग में जब संसाधनों की कमी थी, उस समय यहां चले उपचार के बीच कैंसर के एक मरीज की जिंदगी चिकित्सकों ने बदल दी। शुक्रवार को जांच के लिए मेडिकल काॅलेज अस्पताल पहुंचे मरीज ने उस चिकित्सक का शुक्रिया अदा किया, जिनकी बदौलत आज वह स्वस्थ्य जीवन यापन कर रहा है।
एक समय ऐसा था उसका मसूढ़ा सड़ गया था। बात करने में दिक्कत होती थी। वह न तो खाने-पीने में सक्षम था, न ही उसे खाने की इच्छा होती थी। मन में टीस उभरती थी कि ऐसे जीवन से भला मौत है। ऐसे हालातों के बीच वह वर्ष 2016 में अस्तित्व में आए मेडिकल काॅलेज अस्पताल अंबिकापुर पहुंचा और दंत रोग विभाग के नवपदस्थ सर्जन, चिकित्सक को स्वजन ने उसकी पीड़ा से अवगत कराया था।
सूरजपुर जिला के भैयाथान निवासी शिवभजन पैकरा 62 वर्ष ने बातचीत के दौरान बताया कि छह वर्ष पूर्व 2017-18 में उसके दांत और जबड़ा में अत्यधिक दर्द रहता था। तकलीफ इतनी बढ़ गई कि कुछ भी खाना-पीना उसके लिए दुर्लभ था। वह तंबाकू खाने का शौकीन था, लेकिन ऐसी स्थिति नहीं थी कि वह तंबाकू दबा सके। पेट भरने के लिए माड़-भात खाता था। दर्द असहनीय हो गया और स्थिति जवाब देेने की बन गई तो स्वजन उसे लेकर मेडिकल काॅलेज अस्पताल पहुंचे थे। उस वक्त मेडिकल काॅलेज अस्पताल में सीटी स्कैन की भी सुविधा नहीं थी।
ऐसे में विभाग के एचओडी डाॅ. एसपी कुजूर ने अस्पताल में उपलब्ध सीमित संसाधनों के बीच पीड़ित का जांच किया और सीटी स्कैन कराने के लिए कहा। मरीज के स्वजन की सहमति से बाहरी जांच केन्द्र में उसका सीटी स्कैन कराया गया। इसके बाद मसूढ़ा से अपशिष्ट निकालकर जांच के लिए बाहर भेजा गया, ताकि बीमारी का लक्षण सामने आ सके।
जांच के बाद आई रिपोर्ट में कैंसर का लक्षण सामने आया। जांच रिपोर्ट मिलने के बाद चिकित्सक ने मरीज को भर्ती करने कहा था, ताकि आवश्यक दवा, उपचार किया जा सके। स्वजन जब इसके लिए सहमत हुए तो उन्होंने मरीज को भर्ती कर लिया। कुछ दिनों तक भर्ती मरीज को दवा के सहारे रखा गया, बाद में सर्जन चिकित्सक डाॅ. एसपी कुजूर के नेतृत्व में डाॅ. अभिषेक हरीश ने कैंसर की सफल सर्जरी की। आज स्थिति यह है कि जो मरीज बात कर पाने की स्थिति में नहीं था, वह न सिर्फ बेवाक बात कर रहा है बल्कि सामान्य जीवन जी रहा है। बीच-बीच में वह अस्पताल आकर नियमित जांच भी कराता है।
डाॅक्टर कहते थे बाहर ले जाओ, यहां ठीक नहीं होगा
शिवभजन पैकरा बताता है कि मेडिकल काॅलेज अस्पताल में आए नए डाॅक्टर साहब ने उसे भर्ती कर लिया और ऑपरेशन करने के लिए कहा था, लेकिन अन्य चिकित्सक कहते यहां भर्ती होने से ठीक नहीं होगा, बाहर जाओ। स्वजन बार-बार रायपुर, भिलाई जाने के लिए दंत रोग विभाग के अन्य लोगों के कहने पर डाॅ. अभिषेक हरीश से संपर्क किए तो उन्होंने कहा, सब ठीक हो जाएगा। कहीं जाने की जरूरत नहीं है।
इसके बाद वह गांठ बांध लिया कि जो होना होगा यहीं होगा, वह बाहर नहीं जाएगा। 18 दिनों तक भर्ती रहकर वह पूरा इलाज, ऑपरेशन कराया। ऑपरेशन के बाद उसे आईसीयू में चिकित्सक ने देखभाल में रखा था। स्वस्थ्य होने पर उसकी छुट्टी कर दी गई। घर जाने के बाद वह कुछ दिन आराम करने के बाद उसकी स्थिति सामान्य हो गई। मसूढ़ा कमजोर होने के कारण चिकित्सक ने कठोर चीजें नहीं खाने की सलाह दी थी, जिसे वह आज भी अमल में ला रहा है।
जीराफूल चावल अऊ पाताल के चटनी सुघ्घर लागेल
दस बीघा जमीन का मालिक शिवभजन पैकरा पूर्व में बनी स्थिति और इलाज के बाद आए अंतर को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट है। पहले दर्द के कारण उसमें हमेशा चिड़चिड़ापन बने रहता था। वह कहता है कि सोच रहा था अब नहीं जी पाऊंगा, लेकिन सामने खड़े डाॅ. अभिषेक हरीश की ओर इशारा करके अपनी जुबानी कुछ ऐसे कहा, यही डाॅक्टर मोके यहां से नहीं जाए दिहिस। इनखरे कारण मोके नवा जीवन मिलिस हे। मजाकिया लहजे में जब उससे पूछा गया कि घरे में का खाए के मन करेल, तो वह कहता है मोर खेत के जीराफूल चावल अऊ देशी पाताल के चटनी सुघ्घर लागेल..
पदस्थापनाकाल के बाद किए 150 से अधिक ऑपरेशन
डाॅ. अभिषेक हरीश ने वर्ष 2017-18 में पदस्थापनाकाल के दौर को याद करते हुए कहा कि किसी भी नए चिकित्सा संस्थान में जाने के बाद वहां मरीजों का विश्वास जीतने में समय लगता है। जब शिवभजन पैकरा को लेकर स्वजन उनके संपर्क में आए तो उन्होंने विभाग प्रमुख को मरीज के केस हिस्ट्री से अवगत कराया था। उन्होंने हौसला बढ़ाया और मरीज को हैंडल करने कहा। इस बीच मरीज को गुमराह करने जैसी बातें सामने आई जरूर, लेकिन उन्होंने मरीज के स्वजनों को अपनी बातों से संतुष्ट करके उसे बाहर ले जाने और अनावश्यक खर्च करने से रोक दिया था। उस वक्त संसाधनों की कमी खलती जरूर थी लेकिन विभागाध्यक्ष और अस्पताल प्रबंधन के सहयोग के कारण स्थिति यह है कि उन्होंने अब तक 150 से अधिक जटिल ऑपरेशन किए, जिसमें से लगभग 80 ऑपरेशन पूरी तरह से सफल हुए हैं। लगभग 20 मरीज ऐसे हैं, जो आज भी उनसे सतत संपर्क बनाए हुए हैं।