नई दिल्ली@thetarget365 : पड़ोसी देश नेपाल के हालात ठीक नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे नेपाल में 17 साल बाद फिर लोकतंत्र बनाम राजशाही की पुरानी जंग सड़क पर शुरू हो गई है.. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक लोगों का लोकतंत्र से मोहभंग हो गया?
नेपाल की जनता एक बार फिर सड़क पर है। राजतंत्र और हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर एक बार फिर आंदोलन कर रही है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थक राजशाही की मांग को लेकर प्रदर्शनकारी सड़क पर हैं. इसके बाद सवाल उठ रहे है कि आखिर नेपाल के लोग फिर से राजतंत्र क्यों चाहते हैं. आखिर 17 साल बाद ऐसा क्या हुआ..जिससे लोगों का लोकतंत्र से मोहभंग हो गया। फिलहाल इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं, लेकिन नेपाल के लोगों की माने तो राजशाही खत्म होने के बाद भ्रष्टाचार ने गहरी जड़ें जमा ली है।
जाहिर है कि 15 जनवरी 2007 को एक बड़े आंदोलन के बाद नेपाल को हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। 28 मई 2008 को नेपाल में 240 सालों से चली आ रही राजशाही खत्म कर दी गई। खुद को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। ज्ञानेंद्र सिंह नेपाल के आखिरी राजा थे लेकिन पिछले 17 सालों के दौरान नेपाल में संसदीय लोकतंत्र पूरी तरह विफल साबित हुआ। 17 सालों में 13 सरकारे बनी लेकिन कोई भी सरकार और प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ी तो क्या यही वजह है जनता का लोकतंत्र से मोहभंग हो गया।
नेपाल में राजतंत्र होगा या फिर राजशाही की वापसी होगी? इस सवाल का जवाब भारत के लिए काफी मायने रखता है क्योंकि नेपाल भारत का सबसे करीबी पड़ोसी देश है। दोनों देशों की साझा संस्कृति है। नेपाल में घटने वाली किसी भी घटना से भारत अछूता नहीं रहता। नेपाल में कुछ भी होता है तो सबकी नजर भारत पर रहती है। नेपाल में अभी हिंसा और प्रदर्शन का दौर है। अगर वहां अस्थिरता बढ़ती है तो विदेशी ताकतों को भी वहां हस्तक्षेप करने का मौका मिल सकता है। जैसा कि हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में देखने को मिल रहा है। ऐसे में भारत सरकार को नेपाल में घटने वाली घटनाओं पर पैनी नजर रखनी होगी।