Rajendra Chola anniversary : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार से तमिलनाडु के दौरे पर हैं। रविवार को वह तिरुचिरापल्ली जिले के ऐतिहासिक गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर पहुंचे और तिरुवथिरई महोत्सव में भाग लिया। इस अवसर पर पीएम मोदी ने महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती के अवसर पर एक स्मारक सिक्का जारी किया। यह कार्यक्रम दक्षिण-पूर्व एशिया में चोल साम्राज्य की ऐतिहासिक समुद्री जीत की 1000वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।
कौन थे सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम?
राजेंद्र चोल प्रथम को भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में सबसे प्रभावशाली, दूरदर्शी और शक्तिशाली शासकों में गिना जाता है। उन्हें “समुद्र का शासक” भी कहा जाता है। वह महान चोल सम्राट राजराज चोल के पुत्र थे और अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक विस्तार दिया। उन्होंने गंगईकोंडा चोलापुरम को अपनी राजधानी बनाया और वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया, जो आज भी उनकी शैव भक्ति, वास्तुशिल्प प्रतिभा और प्रशासनिक क्षमता का प्रतीक है।
समुद्री शक्ति जिसने इतिहास को बदला
राजेंद्र चोल प्रथम की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी संगठित और शक्तिशाली नौसेना, जिसने उस समय के समंदरों पर अपनी धाक जमाई थी। उनकी नौसेना ने एक बार में समुद्र के 14 अलग-अलग रास्तों से आक्रमण कर, इंडोनेशिया के श्रीविजय साम्राज्य को पराजित कर दिया था। श्रीविजय के सम्राट विजयतुंगवर्मन को चोल सेनाओं ने बंदी बना लिया। इस युद्ध में राजेंद्र चोल की नावों पर हाथी और विशाल मंजीरे (पत्थर फेंकने वाले यंत्र) लदे थे, जिससे दुश्मनों को चकित कर दिया गया। यह आक्रमण सिर्फ सैन्य विजय नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में भारत की समुद्री महाशक्ति बनने की नींव भी था।
यूनेस्को धरोहर में दर्ज चोल वास्तुकला
राजेंद्र चोल प्रथम के शासनकाल में बने मंदिर आज भी विश्व धरोहर स्थलों में शुमार हैं। गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर और अन्य चोलकालीन मंदिरों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है। ये मंदिर अपनी जटिल मूर्तिकला, चोल ब्रॉन्ज मूर्तियों, और अद्वितीय शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये स्थल चोल साम्राज्य की धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक समृद्धि और कला के प्रति समर्पण का जीवंत प्रमाण हैं।
तिरुवथिरई महोत्सव: तमिल शैव भक्ति की झलक
तिरुवथिरई महोत्सव, जिसमें पीएम मोदी ने हिस्सा लिया, तमिल शैव भक्ति परंपरा का उत्सव है। यह उत्सव भगवान शिव के आनंद तांडव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चोल साम्राज्य के शासक विशेष रूप से शैव धर्म के अनुयायी थे, और उन्होंने इस परंपरा को अपने शासन के दौरान आधिकारिक संरक्षण और प्रोत्साहन दिया। गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर में आज भी इस महोत्सव का आयोजन विशेष धार्मिक महत्व रखता है।
चोल साम्राज्य पर बनी फिल्में भी बढ़ा रहीं जागरूकता
चोल साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास को सिनेमा के माध्यम से भी लोगों के सामने लाया गया है। प्रसिद्ध निर्देशक मणिरत्नम ने ‘पोन्नियिन सेल्वन’ नामक ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित दो भागों में फिल्म बनाई। ‘पोन्नियिन सेल्वन: पार्ट 1’ और ‘पार्ट 2’ में चोल साम्राज्य की राजनीति, युद्ध, संस्कृति और रणनीति को भव्य दृश्यात्मकता के साथ दर्शाया गया। दोनों ही फिल्में न सिर्फ सिनेमाई दृष्टि से सफल रहीं, बल्कि उन्होंने चोल इतिहास को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
पीएम मोदी का संदेश: गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लें
स्मारक सिक्का जारी करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चोल सम्राटों का इतिहास हमें राष्ट्रनिर्माण, समुद्री शक्ति, सांस्कृतिक गौरव और दूरदर्शिता का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि आज जब भारत समुद्री क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने और वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब राजेंद्र चोल जैसे नायकों के योगदान को याद करना न सिर्फ सम्मान की बात है, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी है।
सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं समुद्री विजय वर्षगांठ पर केंद्र सरकार का यह कदम, भारतीय इतिहास के उस स्वर्णिम अध्याय को उजागर करता है, जिसे वर्षों तक उचित स्थान नहीं मिला। यह अवसर केवल इतिहास के गौरव का उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला विचार भी है, जो भारत को पुनः वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जा सकता है।