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दिल्ली एम्स में ईलाज के लिए भर्ती लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने 72 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। तबीयत बिगड़ने के बाद 26 अक्टूबर को उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। वो आईसीयू में थीं। 3 नवंबर को हालत में थोड़ा सुधार होने पर वार्ड में शिफ्ट किया गया, लेकिन 4 नवंबर की शाम को उनका ऑक्सीजन लेवल काफी गिर गया था, कल शाम से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
05 दिन पूर्व ही रिलीज हुआ छठ महापर्व पर नया गाना
मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का छठ महापर्व से पहले नए गाने का वीडियो जारी हुआ है। उनके ऑफिशियल यूट्यूब चैनल से वीडियो को रिलीज किया गया है। ‘दुखवा मिटाईं छठी मइया…. रउए आसरा हमार… सबके पुरवेली मनसा… हमरो सुनलीं पुकार’… रिलीज हुआ है। अभी पांच दिन पूर्व ही इसका ऑडियो जारी हुआ था।
भारतीय लोक संगीत में अपनी एक अमिट छाप छोड़ने वाली गायिका शारदा सिन्हा का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने विशेष रूप से भोजपुरी, मैथिली और मगही गीतों में अपनी मधुर आवाज से लाखों लोगों का दिल जीता। उनके निधन की खबर से न केवल संगीत प्रेमियों के बीच बल्कि पूरे समाज में गहरा शोक व्याप्त हो गया है।
शारदा सिन्हा का नाम उन चंद हस्तियों में शामिल है जिन्होंने भारतीय लोक संगीत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनका योगदान न केवल भोजपुरी संगीत को पहचान दिलाने में रहा, बल्कि उन्होंने लोक संस्कृति को संरक्षित और समृद्ध भी किया।
शारदा सिन्हा का जन्म 01 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही संगीत की ओर रुझान दिखाया और आगे चलकर इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया। उनकी मधुर आवाज और गायकी के प्रति उनका समर्पण उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर ले गया।
छठ पर्व जैसे त्योहारों के गीतों से लेकर विभिन्न पारंपरिक और विवाह गीतों को उन्होंने इतने भावपूर्ण अंदाज में गाया कि वे हर उम्र और हर वर्ग के लोगों में लोकप्रिय हो गए। उनके द्वारा गाया गया ‘कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए” आज भी छठ महापर्व पर हर घर में गूंजता है।
शारदा सिन्हा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से नवाजा। इन सम्मानों ने उन्हें लोक संगीत के प्रति उनके समर्पण के लिए मान्यता दी और उन्हें देश की एक सशक्त सांस्कृतिक आवाज बना दिया।
शारदा सिन्हा के निधन से लोक संगीत जगत में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है। उनके जाने से एक ऐसी विरासत पीछे छूट गई है जो भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। उनके गीतों में न केवल संगीत था, बल्कि उस मिट्टी की खुशबू थी जिसने उन्हें जन्म दिया। उनके संगीत के माध्यम से वे सदा जीवित रहेंगी, और उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।