प्रतापपुर (सूरजपुर)। महाशिवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर क्षेत्रीय विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते सहित आसपास व दूरदराज से बड़ी संख्या में प्रतापपुर के शिवपुर पहुंचे श्रद्धालुओं ने वहां स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग का जलाभिषेक कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान विधायक शकुंतला ने वहां मौजूद क्षेत्रवासियों से भेंट मुलाकात कर भगवान भोलेनाथ से उनकी सुख समृद्धि की कामना करते हुए कहा कि सनातल काल से ही महाशिवरात्रि का पावन पर्व हम सभी की आस्था का एक बड़ा केंद्र रहा है यह पर्व हम सभी को आपस में मिलजुलकर रहने की सीख देता है।
विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते ने शिवपुर धाम के संबंध में चर्चा करते हुए कहा कि शिवपुर का यह पावन स्थल यहां के व अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए सदैव से ही अटूट विश्वास का प्रतीक रहा है लोग यहां पूरे विश्वास के साथ अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने के लिए भगवान भोलेनाथ से आशीर्वाद लेने आते हैं। विधायक पोर्ते ने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भी यहां रुद्राभिषेक किया था। उन्होंने महाशिवरात्रि पर्व के लिए शिवपुर में की गई भव्य तैयारियों के लिए मंदिर समिति की प्रशंसा करते हुए कहा कि शिवपुर में पर्यटन से जुड़ी अपार संभावनाएं हैं इसलिए इस धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल से जोड़ने के लिए वे शासन स्तर पर प्रयास करेंगी। शिवपुर से लौटने के पश्चात विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते ने प्रतापपुर के बनखेता में स्थित शुद्ध पारे से निर्मित 151 किलो वजनी पारदेश्वर शिवलिंग के भी दर्शन व हवन कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान भाजपा मंडल अध्यक्ष अक्षय तिवारी, भाजपा नेता विनोद जायसवाल, मुकेश अग्रवाल, भाजयुमो अध्यक्ष विक्रम नामदेव, आकाश मित्तल, विक्रम प्रताप सिंह, विजेन्द्र कश्यप, अशोक जायसवाल, पप्पल जायसवाल व अन्य उपस्थित रहे।
प्राचीन काल से ही आस्था का केंद्र है शिवपुर
बता दें कि सूरजपुर जिले के प्रतापपुर से पांच किलोमीटर की दूरी पर शिवपुर (तुर्रा) में स्थित यह शिवालय शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक है। यहां स्थापित अर्धनारीश्वर शिवलिंग प्राचीन काल से ही श्रृद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। इस अकेले शिवलिंग में ही माता सती और महागौरी दोनों विराजमान हैं, यही वजह है कि इन्हें अर्धनारीश्वर शिव कहा जाता है,पहाड़ों के नीचे स्थित इस शिवलिंग का अभिषेक अविरल जलधारा करती है। पहाड़ से निकलने वाला जल हर समय शिवलिंग का अभिषेक करते हुए बहता है, यही वजह है कि इन्हें जलेश्वर महादेव भी कहते हैं। इस शिवलिंग कि आराधना करने के लिए सावन मेंं भी भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में विराजे शिवलिंग की कई मान्यताएं हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रतापपुर के राजा प्रताप सिंह को स्वप्न में शिवपुर स्थित पहाड़ी के भीतर इस शिवलिंग के दर्शन हुए थे। जिसके बाद राजा ने पहाड़ को खुदवाया था, खुदाई में यह शिवलिंग मिला और खुदाई के समय से ही पहाड़ से जलधारा बहनी शुरू हुई, जो अब तक बह रही है।
ऐसी मान्यता है कि मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा रहा करता था, लेकिन जंगल की आग में एक दिन नाग-नागिन के जोड़े में से एक की मृत्यु हो गई। जिसके बाद भगवान शिव के अभिषेक के लिए पहाड़ से निकलने वाली जलधारा बंद हो गई थी, लेकिन राजा ने फिर भगवान शिव का दुग्धाभिषेक किया जिसके बाद पहाड़ से जलधारा दोबारा प्रवाहित होनी शुरू हो गई। गौरतलब है कि यह धारा बारहों महीने बराबर रफ्तार में बहती है न ही बरसात में इसमें सैलाब आता है और न ही गर्मी में यह सूखती है।
यहां शिवलिंग के साथ महागौरी का संगम शिवलिंग में देखा जा सकता है, इसके अलावा पहाड़ से जो जलधारा निकलती है वो शिवलिंग का अभिषेक करते हुए एक मानव निर्मित बड़े से कुंड में एकत्र होती है, कुंड मेंं व्यवस्थित रूप से महिलाओं एवं पुरुषों के स्नान के लिए लिए अलग-अलग दिशाओं नल लगाए गए हैं जिनमें से बारहों महीने जलधारा प्रवाहित होती रहती है श्रद्धालु इस जल रुपी धारा को शिव चरणामृत मानते हैं तथा इस जल से स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं। पूर्व में अविरल रुप से बहती हुई इस धारा से एक नदी बनकर बहती थी जिसे बाद में मोड़कर ग्राम खजूरी में सिंचाई के लिए बनाए गए बांध से जोड़ दिया गया। इस पहाड़ी से निकलने वाली यह जलधारा प्राचीन काल से ही रहस्य बनी हुई है, कई भूगर्भ शास्त्री इस जल के स्रोत का पता लगाने आए पर लाख कोशिशों के बावजूद जल के स्रोत का पता लगाने में असफल रहे।