Trump China Friend : अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और आगामी चुनावों के प्रमुख रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है। इस बार उन्होंने चीन की खुलकर तारीफ की है और वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को “करीबी दोस्त” बताया है। ट्रंप की इस दोहरी नीति से भारत-अमेरिका संबंधों में असहजता की स्थिति बनती नजर आ रही है।
ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते “बेहद अच्छे” हैं और इस वर्ष के अंत तक उनकी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात हो सकती है। उन्होंने कहा, “हमारे बीच मजबूत संबंध हैं। शी जिनपिंग मेरे अच्छे दोस्त हैं। हम दोनों कई वैश्विक मुद्दों पर सहमत हैं।”
भारत पर फिर दिखी नाराजगी
हालांकि जहां एक ओर ट्रंप चीन के साथ मधुर संबंधों की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे बैठे। उन्होंने दावा किया कि भारत रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है और इसे मुनाफे में आगे बेच भी रहा है। ट्रंप ने चेतावनी दी है कि “अगर भारत ने अपनी नीति नहीं बदली, तो अगले 24 घंटे में उस पर कड़े आयात शुल्क लगाए जाएंगे।”
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने भारत पर इस तरह की धमकी दी हो। इससे पहले भी उन्होंने भारत पर व्यापारिक नीतियों को लेकर सवाल उठाए हैं, लेकिन इस बार का विरोध उस समय आया है जब भारत वैश्विक ऊर्जा असंतुलन के चलते रूस से सस्ते तेल की खरीद कर रहा है।
चीन पर मौन, भारत पर दबाव?
ट्रंप के इस रवैये से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। चीन न केवल रूस से सबसे अधिक जीवाश्म ईंधन खरीदने वाला देश है, बल्कि वह ईरान से भी बड़े पैमाने पर तेल आयात करता है। इसके बावजूद ट्रंप ने चीन की आलोचना करने से इनकार किया और उसे “नजदीकी दोस्त” बताकर पूरी तरह बचाव में दिखे। इसके विपरीत, भारत को रूस से तेल खरीदने पर कठोर शब्दों में चेतावनी दी गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप चीन को अपने पक्ष में लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं ताकि भविष्य में रूस के साथ किसी संभावित टकराव की स्थिति में अमेरिका अकेला न रह जाए। यही कारण है कि उन्होंने चीन के खिलाफ कोई सख्त बयान नहीं दिया, जबकि भारत पर दबाव बनाया जा रहा है।
भारत ने दिया संकेत – “दोहरे मानदंड नहीं चलेंगे”
ट्रंप के इस बयान से भारत में असंतोष की लहर है। विदेश मंत्रालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि भारत की ऊर्जा नीति उसके राष्ट्रीय हितों से जुड़ी है और वैश्विक बाज़ार की मजबूरियों के चलते उसे विविध स्रोतों से आपूर्ति सुनिश्चित करनी पड़ती है। भारत पहले ही अमेरिका और यूरोपीय संघ पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगा चुका है।
डोनाल्ड ट्रंप की चीन के प्रति नरम और भारत के प्रति आक्रामक नीति ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या यह रणनीति महज चुनावी एजेंडा है या वैश्विक शक्ति संतुलन को लेकर कोई नई योजना? जो भी हो, भारत ने संकेत दे दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा – चाहे दबाव कहीं से भी आए।
Read More : Russia Supports India :भारत के समर्थन में रूस, ट्रंप की टैरिफ धमकी का दिया कड़ा जवाब