रायपुर। हसदेव को जंगल को बचाने के उद्देश्य से वैश्विक एकजुटता की कोशिश की जा रही है। इसी सिलसिले में एनआरआई, वकील, पत्रकार और पर्यावरणविदों सहित 10 से अधिक देशों के 100 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक वर्चुअल बैठक बुलाई। हसदेव को खतरे में डालने वाले खतरनाक सरकारी-कॉर्पोरेट गठजोड़ के बारे में जागरूकता बढ़ाना इस बैठक का अहम उद्देश्य है।
अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला तथा हसदेव अनुसंधान में विशेषज्ञ बिपाशा पॉल ने आदिवासियों के सामने आने वाली विभिन्न तकनीकी चुनौतियों से सभा को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि “मध्य भारत के फेफड़े” के रूप में पहचाने जाने वाले हसदेव वन को विनाशकारी खनन से क्षेत्र के समृद्ध खनिजों का दोहन करने वाले गिरोह से खतरे का सामना करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए आर्थिक विकास, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार को बढ़ावा देने की जंगल की क्षमता के बावजूद, राज्य इसके लाभों से वंचित है।
वक्ताओं ने कहा कि प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ समृद्धि के चौराहे पर खड़ा है। सरकार के अनुचित संरक्षण में बाहरी संस्थाओं ने अनुचित तरीकों से इन संसाधनों का शोषण शुरू किया है जिसने स्थानीय लोगों को नुकसान में डाल दिया है। वक्ताओं ने इसके गंभीर परिणामों पर प्रकाश डाला और हसदेव जंगल के विनाश के खिलाफ लड़ाई को एक जन आंदोलन में बदलने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया। विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिभागियों ने पर्यावरण की सुरक्षा, स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा और क्षेत्र की पारिस्थितिकी अखंडता से समझौता करने के किसी भी प्रयास का विरोध करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
प्रतिभागियों ने इस अमूल्य प्राकृतिक विरासत के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर समुदायों और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करने की प्रतिज्ञा की।