★ फुटपाथ कब्जे का नया ट्रेंड: अस्थायी दुकानें और स्थायी किराया
★ शहर की सड़कों पर ठेले-गुमटियों का कब्जा, फुटपाथ हुआ बिकाऊ
अंबिकापुर @thetarget365 शहर के बनारस मार्ग और आसपास के प्रमुख चौकों पर इन दिनों फुटपाथ पर कब्जा जमाने की होड़ मची है। फुटपाथ, जो पैदल यात्रियों के लिए होना चाहिए था, अब ठेले-गुमटी वालों का अस्थाई व्यापार केंद्र बन चुका है। यह कब्जा इतना संगठित हो चुका है कि शासकीय भूमि अब किराए पर “उपलब्ध” है, और नगर निगम का राजस्व अमला खुद इस धंधे का हिस्सा बन गया है।
पहले कुछ ठेले आए, फिर धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। अब हालत यह है कि हर चौक-चौराहे पर ठेले और गुमटियां सज गई हैं। प्रतीक्षा बस स्टैंड, मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सामने, चौपाटी, घड़ी चौक, गांधी चौक और आकाशवाणी चौक जैसे महत्वपूर्ण इलाकों में पैदल चलना तक मुश्किल हो गया है। फुटपाथों पर इस कदर अतिक्रमण हो चुका है कि अब यह इलाका व्यापार का नया बाजार बन चुका है।
फुटपाथ: व्यापार का नया सेंटर
स्थानीय लोगों के मुताबिक, शुरुआत में कुछ ठेले वालों ने जगह-जगह अपने ठेले लगाए। पैदल यात्रियों ने थोड़ी असुविधा के बावजूद इसे नजरअंदाज किया। लेकिन धीरे-धीरे ठेलों की संख्या इतनी बढ़ गई कि फुटपाथ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। अब यहां ठेले वालों ने स्थायी दुकानें तक खड़ी कर ली हैं।
यह मामला यहीं नहीं रुका। इन अतिक्रमणकारियों ने फुटपाथ की भूमि को किराए पर देना शुरू कर दिया। अस्थाई दुकानें लगाने वाले व्यापारियों से मासिक किराया भी लिया जा रहा है। इसमें नगर निगम का राजस्व अमला भी शामिल है। अधिकारी बकायदा अस्थाई दखल शुल्क वसूलते हैं, और इस प्रक्रिया को वैध बनाने का ढोंग रचते हैं।
नगर निगम की भूमिका: सवालों के घेरे में
नगर निगम का राजस्व अमला इस अतिक्रमण को हटाने के बजाय इसे बढ़ावा देने में लगा है। रोजाना शुल्क के नाम पर एक व्यवस्थित अवैध वसूली का खेल चल रहा है। सवाल उठता है कि क्या नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी इस समस्या को नहीं देख रहे, या फिर उनकी आंखों पर “राजस्व” की पट्टी बंधी हुई है?
स्थानीय निवासी राजेश गुप्ता कहते हैं, “हमारे इलाके में फुटपाथ पर चलने की जगह नहीं बची। अगर नगर निगम इस तरह से अपनी आंखें मूंदे रहेगा, तो आने वाले समय में सड़कों पर भी ठेले लग जाएंगे।”
वहीं, निगम के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम हर महीने अभियान चलाते हैं, लेकिन ठेले वाले दोबारा लौट आते हैं। हम अकेले कुछ नहीं कर सकते।”
पैदल यात्रियों की दुर्दशा
फुटपाथ पर कब्जे का सबसे बड़ा खामियाजा पैदल यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं सड़क पर चलने को मजबूर हैं। इससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है।
शहर के आकाशवाणी चौक के पास रहने वाली एक स्थानीय महिला सविता देवी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “जब सरकार ने फुटपाथ बनाया, तो वो पैदल चलने वालों के लिए था। लेकिन अब यहां सब्जी, फल और कपड़ों के ठेले लग गए हैं। मजबूरी में हमें सड़कों पर चलना पड़ता है।”
क्या कहती है प्रशासन की योजना?
प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के कई दावे किए हैं, लेकिन ये सब कागजों में सिमट कर रह गए हैं। नगर निगम हमेशा ठेले वालों को वैकल्पिक स्थान देने की बात कहता है लेकिन यह योजना ठंडे बस्ते में चली जाती है।
फुटपाथ की ‘किराएदारी’ पर बढ़ती शिकायतें
स्थानीय व्यापारियों और राहगीरों ने कई बार प्रशासन से शिकायत की है कि फुटपाथ पर कब्जा जमाने वाले लोग शासकीय भूमि को किराए पर दे रहे हैं। इसके बावजूद, कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है।
निगम की अनदेखी का परिणाम
फुटपाथ का यह “किराए का धंधा” शहर की खूबसूरती और यातायात व्यवस्था को बिगाड़ रहा है। अगर नगर निगम जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं करता, तो आने वाले समय में यह अतिक्रमण और बढ़ेगा।
शहरवासियों की मांग है कि प्रशासन ठेले-गुमटी वालों को वैकल्पिक बाजार प्रदान करे और फुटपाथ को पैदल यात्रियों के लिए खाली कराए। वरना यह समस्या कानून-व्यवस्था के लिए भी चुनौती बन सकती है।
अंबिकापुर के फुटपाथ पर चल रहे इस कब्जे के खेल को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां “फुटपाथ व्यापार” अब एक संगठित व्यवसाय बन गया है। नगर निगम को तुरंत इस दिशा में कदम उठाना चाहिए, ताकि शहर की सूरत और सीरत दोनों बचाई जा सके।