अंबिकापुर। अंबिकापुर शहर के भट्टी रोड से निकलकर पूरी जवानी भारतीय सेना में सेवा देने के बाद अब यह अंबिकापुरियन रविंद्र अंबष्ट कारपोरेट क्षेत्र में सेवा दे रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में लंबे समय तक रहने के बाद अब ये कॉर्पोरेट क्षेत्र में कदम रख देश के कई नामचीन लोगों के संपर्क में हैं। सुप्रीम कोर्ट के कई सेवानिवृत्ति जस्टिस के साथ भी उनकी मुलाकात हो रही है। अंबिकापुरियन ने आज के ही दिन 35 वर्ष पूर्व सेना में भर्ती होने का सपना पूरा किया था। सेना में शामिल होने के बाद देश के कई स्थानों पर सेवाएं दी और दिल्ली से दूरभाष पर उन्होंने TheTarget365 को अपनी कहानी बताई।
सेवानिवृत्ति सैनिक रविंद्र अंबष्ट ने कहा कि किसी चीज के उपलब्ध होने पर भी नियमों के पालन हेतु उसका उपभोग नहीं करना संयम है। किसी चीज का भाव होने पर भी खिन्न न होना व किसी के अवांछित व्यव्हार पर भी सजा नहीं देना सहनशीलता है। 27 नवंबर 1986 को जब मैं भारतीय सेना में भर्ती हुआ तो हायर सेकेंडरी का एग्जामिनेशन पास करके गया। अभाव से गुजरी जिंदगी, यूनिफार्म के अलावा सिर्फ एक पैंट से करीब चार साल बिताया कपडे का पेवन लगा हुआ कपड़ा। यह मात्र एक बहुत छोटा सा उदहारण है।1986 से 2023 पूरे 37 वर्ष हो गए अपनी कार्यकाल में 15 वर्ष भारतीय सेना में और 24 वर्ष तक विभिन्न जगहों पर कार्य किया। भारतीय सेना में आने के बाद अपनी पढाई को जारी रखा मास्टर्स किया इंग्लिश लिटरेचर से, लॉ किया राजस्थान विश्वविद्यालय से बिलकुल नियमानुसार भारतीय सेना से परमिशन लेकर। रविंद्र अंबष्ट ने बताया कि मै तीन बार कमीशन अफसर के लिए एसएसबी बोर्ड गया। लिखित परीक्षा पास करके पर वहां सेलेक्ट नहीं हुआ। भारतीय सेना में सेवा समाप्ति के बाद कार्पोरेट की दुनिया में कदम रखा जहां एक से एक टैलेंटेड कान्वेंट एजुकेडेट लोग मिलते थे जब भी साक्षात्कार के लिए गया मैं।संयुक्त राष्ट्र के प्रोजेक्ट के आलावा एफआरई, आईएफएस अकादमी, आईएएस अकादमी, भारतीय रेल जैसे ऊंच संसथान में भी सेवा प्रदान करने का मौका मिला और सफलता पूर्वक कामो को अंजाम दिया। जीवन में सफल होने का श्रेय अपने माता पिता को देना चाहता हूँ। दृढ़ता के साथ कहता हूँ कि जिस बच्चे के साथ माता पिता का दिली आशीर्वाद है चट्टान भी उसके सामने टूट जाएगा। यहां यह बात अति महत्वपूर्ण है की मै हायर सेकेंडरी की परीक्षा में पहली बार फेल हो गया था, तब भी मेरे माता पिता का सपोर्ट दृढता से मेरे साथ रहा, और एक या दो या तीन असफलता के बाद भी आप एक सफल जीवन जी सकते हैं। जीवन की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। जीवन की उतार चढाव में धैर्य और संयम ने अपना काम किया, आज एक बार फिर इस विशेष अवसर पर 37 वर्ष पूरा हुआ जब मै भारतीय सेना में गया था, अपने स्कूल टीचर्स, आर्मी अफसर जो मुझे हर कदम सहायता किए उनका धन्यवाद करता हूँ। सीखने की ललक, धैर्य और संयम से सिर्फ उद्देश्य को पूरी करने की इच्छा पूरे मेहनत और मन से हमें एक विशेष दर्जा देती है।