अंबिकापुर। उत्तर छत्तीसगढ़ में 15 साल से बरसात में लगातार गिरावट आ रही है। इस साल तो अल्प बरसात ने रिकार्ड ही तोड़ दिया है। उत्तर छत्तीसगढ़ में इस वर्ष धान की खेती भी प्रभावित हुई है। लगातार कम होती बारिश चिंता का बड़ा कारण बन गया है, सरगुजा के एकमात्र घुनघुट्टा जलाशय ही भरा है, बाकी सारे जलाशय खाली हैं।
मौसम वैज्ञानिक एएम भट्ट ने बताया है कि भारत में मानसून की अवधि एक जून से 30 सितम्बर तक मानी जाती है। मानसून की इन 122 दिनों की चार मास की अवधि में तथा मानसून की अवधि के बाद के औसतन 15 दिन अर्थात 15 अक्टूबर तक सम्पूर्ण भारत बादलों के आगोश में रह कर भरपूर भीगता है। वर्षा आधारित कृषि कार्य पर आश्रित किसानों के लिए यह अवधि उनके आर्थिक जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करता है। अनुकूल वर्षा होने पर जहां उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ होती है वहीं वर्षा की प्रतिकूलता उनके जीवन में किसी बवंडर से कम नहीं होता है। विशेष रूप से जब हम सरगुजा जैसे अंचल के किसानों की स्थिति पर चिंतन करते हैं तो वर्षा की प्रतिकूलता उनके लिए बड़ी विपदा नजर आती है। पहाड़ो और पठारों की अधिकता होने से वर्षा के जल का समुचित संधारण नहीं हो पाने से सिंचाई के सीमित विकल्पों के कारण उन्हें आपेक्षित उपज नहीं मिल पाती है। जिससे भविष्य की आजीविका की उनकी चिंता बलवती हो उठती है।
यदि हम अंबिकापुर के विगत 15 वर्षों में हुई मानसूनी वर्षा के आंकड़ो का अवलोकन करें तो पाएंगे कि इन 15 वर्षों में उत्तर छत्तीसगढ़ की मानसून की वर्षा में लगातार विचलन हुआ है। जहां अंबिकापुर की दीर्घावधि मानसून की वर्षा का औसत 1211 मिमी आता है वहीं विगत अर्ध शताब्दी में सबसे कम वर्षा के होने का रिकार्ड भी इन्हीं 15 वर्षों में बनता देखा गया है। पिछले 50-52 वर्षों में सन 2009 और 2010 में जून से सितम्बर के मानसून काल मे क्रमशः 603.2 और 649.7 मिमी की सबसे न्यूनतम वर्षा हुई थी। इन 15 वर्षों में से सिर्फ तीन वर्षों 2011 (1445.5 मिमी), 2016 (1331.6 मिमी) और 2017 (1383.5 मिमी) में ही वर्षा औसत से अधिक दर्ज की गई है। 2017 के बाद से 2023 वर्तमान वर्ष तक वर्षा की मात्रा 1100 मिमी तक भी नहीं पहुंची है। इस वर्ष अंबिकापुर में मात्र 873.1 मिमी वर्षा मानसून काल में अभी तक (29 सितम्बर शाम तक) दर्ज की गई। पिछले वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 1052.5 मिमी था।