B. Sudarshan Reddy: भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए इस बार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी का नाम चर्चा में है। उनका जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ और लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने न्यायिक सेवा में कदम रखा। विभिन्न हाईकोर्ट में कार्य करने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। उनके फैसले सामाजिक न्याय और संविधान की सर्वोच्चता की रक्षा के लिए हमेशा चर्चा में रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का सलवा
छत्तीसगढ़ का सलवा जुडूम आंदोलन उनके करियर का एक अहम अध्याय रहा है। साल 2005 में छत्तीसगढ़ में माओवादी गतिविधियों के खिलाफ ग्रामीणों की सुरक्षा और संगठन के नाम पर यह आंदोलन शुरू हुआ। राज्य सरकार ने हजारों युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) बनाकर हथियार थमा दिए, ताकि नक्सलियों का मुकाबला किया जा सके।हालांकि, समय के साथ सलवा जुडूम हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघनों का प्रतीक बन गया। आदिवासी इलाकों में घर जलाने, विस्थापन और फर्जी मुठभेड़ों की घटनाएं सामने आने लगीं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने 2011 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
निर्णय का स्वागत
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि नागरिकों को हथियार थमाकर उन्हें संघर्ष में झोंकना संविधान के खिलाफ है। सरकार का यह कदम लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है। इसके बाद सलवा जुडूम को असंवैधानिक करार दे दिया गया। इस फैसले के बाद बी. सुदर्शन रेड्डी का नाम देशभर में चर्चा में आया। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उनके निर्णय का स्वागत किया, जबकि सरकार की नीतियों पर सवाल उठे। रेड्डी ने अपने फैसले में साफ कहा कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों की रक्षा करे, न कि उन्हें हिंसा में झोंके।
विस्थापन और हिंसा
बी. सुदर्शन रेड्डी ने न्यायपालिका में रहते हुए कई अन्य मामलों में भी महत्वपूर्ण टिप्पणियां दीं। उनका न्यायिक दृष्टिकोण हमेशा समानता, न्याय और संविधान की सर्वोच्चता पर केंद्रित रहा है। यही कारण है कि उनका नाम अब उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में आने पर लोगों के बीच चर्चा में है। सलवा जुडूम का अध्याय आज भी छत्तीसगढ़ में लोगों की यादों में ताजा है। हजारों आदिवासी परिवारों ने इसके कारण विस्थापन और हिंसा का सामना किया। यही वजह है कि रेड्डी का नाम आते ही यह पुराना लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि उपराष्ट्रपति पद पर ऐसे व्यक्ति का होना महत्वपूर्ण है, जो संविधान और मानवाधिकार की गहरी समझ रखते हों। बी. सुदर्शन रेड्डी का छत्तीसगढ़ से जुड़ाव और उनके न्यायिक फैसले उन्हें एक अलग पहचान देते हैं।
अभी यह देखना बाकी है कि उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में उनकी उम्मीदवारी किस दिशा में जाती है। लेकिन इतना तय है कि सलवा जुडूम पर उनका ऐतिहासिक फैसला भारतीय न्यायिक इतिहास का अहम हिस्सा रहेगा और इसे भविष्य में मानवाधिकार और न्याय के क्षेत्र में संदर्भ के तौर पर याद किया जाएगा।
बी. सुदर्शन रेड्डी की न्यायिक यात्रा और उनके फैसले यह साबित करते हैं कि संविधान की रक्षा और मानवाधिकारों की प्राथमिकता एक न्यायाधीश की सबसे बड़ी भूमिका होती है। यही वजह है कि उनका नाम अब राजनीति में भी न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रतीक के रूप में उभर रहा है।